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Natural farming: सूरत के किसान ने प्राकृतिक खेती से वार्षिक 12 लाख रुपए की आय की

Natural farming: सूरत जिले में मांडवी तहसील के बलेठी गाँव के प्रगतिशील किसान ने कम खर्च में होने वाली प्राकृतिक खेती में पाई सफलता

आठवीं पास किसान वालजीभाई चौधरी ने रासायनिक खेती छोड़ जंगल मॉडल आधारित प्राकृतिक खेती का मार्ग अपनाया

  • Natural farming: वालजीभाई ने दो एकड़ भूमि में मामूली खर्च पर 20 से अधिक फसलों का उत्पादन कर वार्षिक 12 लाख रुपए की आय सृजित की
  • जंगल मॉडल आधारित मॉडल फॉर्म बनाने के लिए राज्य सरकार की ओर से 13,500 रुपए की सहायता प्राप्त हुई
  • प्राकृतिक खेती में भी एक कदम आगे बढ़ कर जंगल मॉडल आधारित प्राकृतिक खेती के कारण अधिकतम् उत्पादन के साथ दुगुनी आय हो रही है
  • गाय आधारित खेती करने के कारण सरकार की ओर से हर साल निर्वहन योजना से 10,800 रुपए की सहायता मिल रही है
  • सरकार की किसान कल्याण योजनाओं के माध्यम से खेत में फसल को अच्छी तरह पानी मिल सके; इसके लिए 5 लाख रुपए की लागत से बोरिंग कर प्लास्टर का पक्का कुआँ बनाया
  • खेती के उपयोग के लिए 1.80 लाख रुपए के मिनी ट्रैक्टर की खरीद पर सरकार द्वारा 60 हजार रुपए की सब्सिडी प्राप्त हुई: किसान वालजीभाई चौधरी
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सूरत, 15 जून: Natural farming: रासायनिक कीटनाशकों तथा यूरिया उर्वरक की खर्चीली खेती को तिलांजलि देकर किसान अब बड़ी संख्या में प्राकृतिक खेती की ओर मुड़ रहे हैं, तब सूरत जिले में मांडवी तहसील के बलेठी गाँव के किसान वालजीभाई रायाभाई चौधरी ने प्राकृतिक खेती में भी एक कदम आगे बढ़ कर जंगल मॉडल आधारित प्राकृतिक खेती शुरू कर सफलता पाई है। जुताई और उर्वरक रहित यह प्राकृतिक खेती करने वाले वालजीभाई ने पहली बार दो एकड़ भूमि में प्रयोग कर अपेक्षित परिणाम प्राप्त किया है।

इसके बाद वे लगातार सात वर्षों से जंगल मॉडल आधारित खेती कर अन्य किसानों के लिए प्रेरणादायक बने हैं। इस पद्धति से वे मामूली खर्च में एक ही भूमि में 20 से अधिक प्रकार की फसलों का उत्पादन प्राप्त कर 12 लाख रुपए सालाना आय अर्जित कर रहे हैं।

Natural farming

पिछले सात वर्षों से जंगल मॉडल आधारित प्राकृतिक खेती कर अच्छी फसल, अधिक त्पादन तथा आय प्राप्त होने पर हर्ष के साथ किसान वालजीभाई चौधरी ने कहा, “बचपन से ही मुझे खेती के प्रति लगाव रहा है, जिसमें सब्जियों के खेती में मैं अधिक रुचि लेता और सब्जियों की देखभाल खुद ही करता। कक्षा 8 तक की पढ़ाई कर सिलाई क्लास में सिलाई सीख कर मैं दरजी के काम के साथ जुड़े, जिसके कारण खेती से दूर हो गया, परंतु वर्ष 1982 में मैंने दरजी काम छोड़ कर परंपरागत खेती करने का निश्चय किया और पुन: खेती की ओर रुख किया।

इसके बाद मैंने वर्ष 2017 में खेती से जुड़े विभिन्न शिविरों से प्राकृतिक खेती का मार्गदर्शन प्राप्त किया। मुझे आत्मा प्रोजेक्ट के शिविर के जरिये प्राकृतिक खेती की प्रेरणा मिली थी। इसके बाद मैंने वर्ष 2018 में एक गाय खरीद कर प्राकृतिक खेती की शुरुआत की।”

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किसान वालजीभाई चौधरी आगे कहते हैं कि पहले रासायनिक खेती में आय नहीं होने पर वे जंगल मॉडल आधारित प्राकृतिक खेती की ओर मुड़े, जिसमें किसी प्रकार की जुताई किए बिना खेती की शुरुआत की। इस खेती में सभी फसलें एक साथ बोनी होती हैं। इसलिए उन्होंने खेत में एक साथ 20 से 25 फसलों की बुवाई की। इनमें अनाज, दलहन, सब्जियाँ, फल की फसलें शामिल हैं। फल की खेती में अनार, चीकू, अमरूद, सीताफल के साथ सब्जियों की बुवाई की गई है। ज्वार, बाजरा, मक्का जैसे अनाज की भी वे बुवाई कर रहे हैं। साथ ही फली, मूंग, उड़ जैसी दलहन फसलें भी हैं। सामूहिक फसल के कारण उत्पादन खर्च कम और प्राकृतिक खेती पद्धति अपनाने से उत्पादन भी अधिक मिल रहा है।

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वालजीभाई कहते हैं, “प्राकृतिक खेती में थोड़ी मेहनत चाहिए। अन्यथा उत्पादन खर्च तो नहीं के बराबर होता है। इस खेती के कारण अधिकतम् व दुगुना उत्पादन मिलता है, दुगुनी आय होती है। इससे पर्यावरण तथा मानवीय स्वास्थ्य को भी रक्षण मिलता है और पानी की बचत होती है। इसके अलावा, जमीन की नमी संग्रह क्षमता भी बढ़ती है, जिससे जमीन बंजर नहीं होती है। हर वर्ष अच्छा फसल उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।”

राज्य सरकार द्वारा मिली आर्थिक सहायता का विशेष उल्लेख करते हुए वे कहते हैं कि राज्य सरकार की विभिन्न किसान कल्याण योजनाओं के जरिये उनके जैसे सुदूरवर्ती किसान आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बने हैं। जंगल मॉडल आधारित खेती का मॉडल फॉर्म बनाने के लिए सरकार द्वारा 13,500 रुपए की सहायता प्राप्त हुई है। इसके आलावा, खेत में फसल को पर्याप्त पानी मिल सके; इसके लिए उन्होंने 5 लाख रुपए की लागत से सरकारी योजना के तहत बोरिंग कर पक्का आरसीसी स्ट्रक्चर वाला कुआँ बनाया है। 1.80 लाख रुपए के मिनी ट्रैक्टर की खरीद पर सरकार द्वारा उन्हें 60 हजार रुपए की सब्सिडी प्राप्त हुई है।

गाय आधारित खेती में उत्पादन अधिक प्राप्त हुआ, भूमि की गुणवत्ता सुधरी

उन्होंने जोड़ा कि राज्य सरकार प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए देसी गाय निर्वहन खर्च के लिए प्रतिमाह 900 रुपए की सहायता देती है। वे भी इस योजना का लाभ ले रहे हैं। इसके अलावा, आत्मा के अधिकारी भी समय-समय पर किसानों को प्राकृतिक खेती का उम्दा मार्गदर्शन देते हैं, जो सराहनीय है। वे स्वयं गोमूत्र तथा उपले से जीवामृत एवं धनजीवामृत बना कर खेती में उसका उपयोग करते हैं, जिसके कारण भूमि की गुणवत्ता भी सुधरी है।

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जंगल मॉडल प्राकृतिक खेती में जुताई का खर्च नहीं लगता है

वालजीभाई ने कहा कि जंगल मॉडल पद्धति में जुताई बिलकुल नहीं करती होती है। इससे खेत में बैल, ट्रैक्टर या आदमी रखने का कोई भी खर्च नहीं होता है। कीटनाशक छिड़काव की भी जरूरत नहीं पड़ती है। एक ही खेत में सारी फसलें मिक्स यानी इकट्ठा बोनी होती हैं। उन्होंने कहा कि उनके दो एकड़ के खेत में जंगल मॉडल आधारित प्राकृतिक खेती में एक साथ 20 से 25 फसलें हैं। इनमें अनाज, दलहन, सब्जियाँ और फल सहित सभी फसलें होती हैं। फल की फसलों में अनार, चीकू, अमरूद, सीताफल, अंजीर, आँवला, संतरा, केला और पपीते जैसी कुल 10 से 12 फसलें भी शामिल हैं।

लोग खेत में मार्गदर्शन लेने आते हैं
सब्जी की बुवाई में इस क्षेत्र की सीजनेबल सब्जियाँ बैंगन, टमाटर, बंडागोभी, फूलगोभी, पालक, खजूर (छुआरा), गिलका, लौकी, पुदीना तथा करेला आदि शामिल है। इसी प्रकार ज्वार, बाजरा तथा मक्का जैसे अनाज और दलहन में फली, ग्वार, मूंग एवं उड़द जैसी फसलें हैं। अन्य किसान भी उनके खेत में मार्गदर्शन लेने के लिए आते हैं।

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