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बगरौ बसंत (Vasant) है

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सृष्टि चक्र का आंतरिक विधान सतत परिवर्तन का है और भारत देश का सौभाग्य कि वह इस गहन क्रम का साक्षी बना है । तभी ऋत और सत्य के विचार यहाँ के चिंतन में गहरे पैठ गए हैं और नित्य- अनित्य का विवेक करना दार्शनिकों के लिए बड़ी चुनौती बनी रही । यहाँ ऋतुओं का क्रम कुछ इस भाँति संचालित होता है कि पृथ्वी समय बीतने के साथ रूप , रस और गंध के भिन्न-भिन्न स्वाद से अभिसिंचित होती रहती है ।

वर्षा , ग्रीष्म , शरद , हेमंत , शिशिर और वसंत (Vasant) नामों से ख्यात ये छह ऋतुएँ प्रकृति के संगीत के अलग -अलग राग , लय और सुर के साथ जीवन के सत्य को उद्भासित करती हैं । वह पशु , पक्षी और वनस्पति समेत सभी प्राणियों को यह संदेश देती रहती है कि तैयार रहो और गतिशील बने रहो जिससे जीवन का क्रम बना रहा । प्रकृति की कूट ( कोड ) भाषा सभी पढ़ भी लेते हैं , शायद मनुष्य से अधिक सटीक ढंग से और प्रकृति की लीला में सहचर बन जाते हैं । मनुष्य अपनी प्रगति को देख-देख अभिमान से चूर हुआ जा रहा है । वह कुछ इस क़दर आत्मलीन सा हुआ जा रहा है कि उसे अपने अलावे कुछ दिखता ही नहीं ।

पूरी सृष्टि पर क़ब्ज़ा जमाना ही उसका एक मात्र लक्ष्य हुआ जा रहा है । चंद्र विजय के बाद अब हर कोई मंगल ग्रह पर धावा बोल रहा है । लगता है मनुष्य प्रकृति के साथ दो दो हाथ करने को आतुर है । जल , थल और नभ हर कहीं उसकी दस्तक जारी है । पर इन उलझनों से दूर अभी भी गाँव , क़स्बे और महा नगर में बसा मध्य वर्ग वसंत पंचमी (Vasant) का उत्सव मनाता है । प्रयाग में इस दिन माघ मेला में विशेष स्नान का आयोजन भी होता है ।

Vasant

वसंत (Vasant) की दस्तक अनेक अर्थों में अनूठी होती है । बीतती ठंड और हल्की गर्मी के बीच की प्रीतिकर गर्माहट लिए यह मौसम यदि ऋतुराज कहा जाता है तो वह अन्यथा नहीं है । पेड़ पौधों की हरियाली और नाना प्रकार के फूलों की सुरभि से परिवेश सुवासित रहता है । कालिदास के शब्दों में वसंत में सब कुछ चारुतर यानी अतिसुंदर और प्रीतिकर हो उठता है : सर्वम प्रिय म चारुतरम वसंते । उनके ऋतु संहार में मन में , वन में और पवन में मादकता का मनोहारी चित्रण मिलता है । इस काल को मधुमास भी कहा जाता है जो मस्ती और उल्लास से ओत प्रोत मनोभाव और प्रकृति की रमणीयता को रेखांकित करता है । देव , सेनापति , घन आनंद , पदमाकर जैसे हिंदी कवियों ने शृगार , माधुर्य , लावण्य और सौंदर्य को ले कर अविस्मरणीय काव्य रचा है । आधुनिक कवियों में निराला , पन्त और अज्ञेय ने वासंती प्रकृति का जीवंत चित्र खींचा है ।

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रम्य परिवेश सर्जनात्मकता की ओर उन्मुख करता है इसलिए वाग्देवी की कृपा के लिए सभी उत्सुक रहते हैं । वेद के वाक्सूक्त में वाक् की महिमा अनेक तरह से की गई है ।

अध्ययन अध्यापन से जुड़े बुद्धिजीवी वर्ग वसंत पंचमी (Vasant) को ‘सरस्वती पूजा ‘ यानी ज्ञान के उत्सव के रूप में मनाते हैं । स्वच्छ पीले परिधान में विद्यार्थी गण सरस्वती की प्रतिमा स्थापित कर विद्यालयों और छात्रावासों में ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की आराधना की जाती है । श्वेत कमल पर विराजती शुभ्र वस्त्रों से सुशोभित धवल द्युति वाली देवी सरस्वती वीणा और पुस्तक को धारण करती हैं । सारे देवता उनकी वंदना करते हैं । उनसे प्रार्थना की जाती है कि वे बुद्धि की जड़ता के अंधकार को दूर करें । सुकुमार मति विद्यार्थी अपनी पुस्तक सरस्वती की प्रतिमा के निकट रख विद्या प्राप्ति की अभिलाषा भी ज्ञापित करते हैं ।

स्मरणीय है कि सरस्वती का उल्लेख नदी के रूप में प्राचीन साहित्य में मिलता है परंतु कालक्रम में वह लुप्त हो गई । प्रयाग अभी भी गंगा यमुना और प्रच्छन्न सरस्वती के संगम के रूप में श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है ।

वसंत (Vasant) की मादकता के साथ अब एक और आयाम भी जुड़ गया है । नए दौर में आधुनिक युवक युवतियाँ वेलेंटाइन डे और सप्ताह के प्रति आकर्षित हो रहे हैं । इस बार गुलाबी गंध के साथ शुरू हो वैलेंटाइन दिवस पर चौदह फ़रवरी को पूर्णता प्राप्त होगा । युवा पीढ़ी आपने प्यार और रोमांस की अभिव्यक्ति के लिए अवसर ढूँढने को तत्पर रहता है । प्यार की पेंग बढ़ाने और पारस्परिक आकर्षण की यात्रा को सहज बनाता वालेंटाइन डे का युवाओं को इंतज़ार है । वासंती मन का यह नया संस्करण नागर सभ्यता का वैश्वीकरण की ओर बढ़ता कदम लगता है ।

वसंत (Vasant) का संदेश है कि जीवन में उत्सुकता और आह्लाद को आमंत्रित करो । प्रेम और प्रीति का रंग भर कर ही जीवन सम्पूर्णता को प्राप्त करता है ।

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