GAY marriage: समलैंगिक विवाह पर डॉ.दिलीप बच्चानी के विचार…
GAY marriage !1समलैंगिक विवाह!!
GAY marriage: आजकल सुप्रीम कोर्ट में तो समलैंगिक विवाह पर चर्चा हो ही रही है, परंतु बुद्धिजीवी खेमा भी खूब माथापच्ची में लगा हुआ है। हर एक का अपना तर्क है, जो समलैंगिक विवाह के पक्षधर है वे अलग-अलग देशों में बने कानूनों का हवाला देते है, तो विरोधी धार्मिक मान्यताओं, परंपराओं, स्त्री पुरुष सबंधो की खूबियां बताते नहीं थकते।
विदेशो में क्या होता है क्या नहीं उससे भारत और भारतीयता का कोई लेना देना नहीं, भारत को अपनी सभ्यता, संस्कृति और विरासत के अनुसार कानून बनाना चाहिए।
वैसे आम भारतीय जन मानस में समलैंगिकों को कोई अच्छी दृष्टि से नही देखा जाता। नामर्द, छक्का, नपुंसक, क्लीव जाने किन-किन नामों से संबोधित किया जाता है। गाना बजाना, नाचना, भीख मांगना और हंसी के पात्र से ज्यादा तव्वजो इन्हें कभी नही दी गई।
परंतु अभी पिछले कुछ दशक से समाज में इनकी स्वीकार्यता भी बड़ी है। फिर चाहे वो चुनाव जीतकर विधायक बनना हो या फिर अध्यात्म के क्षेत्र में किन्नर अखाड़ा का शुरू होना हो।
पर जब बात विवाह की होती है तो हमें प्रकृति की ओर देखना चाहिए, पेड़ पौधे हो या पशु पक्षी समान लैंगिक सबंध कही नही मिलते।
वनस्पति शास्त्र में भी पुंकेसर, स्त्रीकेसर के बिना प्रजनन संभव नहीं तो जीव विज्ञान में स्त्री तत्व और पुरुष तत्व के मिलन के बिना प्रजनन असंभव है। अर्थात विवाह का सीधा संबंध प्रजनन, सन्तानोत्पत्ति या वंशवृद्धि से है।
समलैंगिक विवाह जब इन शर्तों पर खरा नहीं उतरता तो इसे कानूनी मान्यता किस प्रकार दी जा सकती है।
मनुष्य होने के नाते जीवन जीने के लिए जो सुविधाएं जीवमात्र को चाहिए वे इन्हें भी मिलनी चाहिए, समाज में सम्मान पूर्वक रहने जीने का सम्पूर्ण अधिकार मिलना चाहिए।
परंतु गे, और गे के या लेसबियन और लेसबियन के बीच वैवाहिक संबंध अतार्किक, बेतुके, बेमानी है।
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए देश की आवाज उत्तरदायी नहीं है।)
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