Digendra kumar

Kargil war hero digendra: पांच गोली खाकर भी काटी पाकिस्तानी मेजर की गर्दन, जानें कारगिल के हीरो कोबरा दिगेंद्र कुमार के बारे में…

Kargil war hero digendra: कोबरा दिगेंद्र कुमार ने पांच गोलियां लगने के बावजूद पाकिस्तानी मेजर की गर्दन काटते हुए तोलोलिंग की चोटी पुनः फतह की और 13 जून की सुबह तिरंगा लहरा दिया

नई दिल्ली, 26 जुलाईः Kargil war hero digendra: कारगिल युद्ध को हुए 23 साल पूरे हो चुके हैं। लेकिन भारत के जांबाजों की वीरता की दास्तां आज भी हमारे जेहन में ताजा हैं। कारगिल में इस विजय का श्रेय यूं तो पूरी सेना को जाता है लेकिन इसमें भी एक वीर जवान का अहम किरदार था। हम बात कर रहे हैं कोबरा दिगेंद्र कुमार की।

कारगिल युद्ध के दौरान उन्होंने अपनी टीम के सहयोग से 48 पाकिस्तानी सैनिकों को मारकर न केवल देश को बड़ी कामयाबी दिलाई थी बल्कि पांच गोलियां लगने के बावजूद पाकिस्तानी मेजर की गर्दन काटते हुए तोलोलिंग की चोटी पुनः फतह की और 13 जून की सुबह तिरंगा लहरा दिया। ऐसे में आइए जानें कारगिल के हीरो कोबरा नायक दिगेंद्र कुमार की वीर गाथा के बारे में….

राजस्थान में जन्म, सैन्य माहौल में पले-बढ़े

राजस्थान के सीकर जिले की नीमकाथाना तहसील के एक गांव में जाट परिवार में जन्मे, दिगेंद्र बचपन से सैन्य माहौल में पले-बढ़े। उनके नाना स्वतंत्रता सेनानी रहे थे तो पिता भारतीय सेना के वीर योद्धा रहे। 1947-48 के युद्ध के दौरान दिगेंद्र के पिता शिवदान सिंह के जबड़े में 11 गोलियां लगी थीं, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी थी। अपने पिता से प्रेरित दिगेंद्र कुमार 2 राजपूताना राइफल्स में भर्ती हो गए थे।

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राजपूताना राइफल्स में भर्ती के दो साल बाद 1985 में दिगेंद्र कुमार को श्रीलंका के जंगलों में प्रभाकरण के तमिल टाइगर्स के खिलाफ अभियान के लिए गई इंडियन पीस कीपिंग फोर्स में भेजा गया। इस अभियान के दौरान ही एक ही दिन में दिगेंद्र ने आतंकियों को मार गिराया, दुश्मन का गोला-बारूद का ठिकाना नष्ट किया और उनके कब्जे से पैराट्रूपर्स को छुड़ाया था।

यह सब अचानक हुआ था जब वह अपने जनरल के साथ गाड़ी से जा रहे थे और रास्ते में पुल के नीचे से लिट्टे के कुछ आतंकियों ने जनरल की गाड़ी पर हेंड ग्रेनेड फेंका था, दिगेंद्र ने उसी ग्रेनेड को कैच किया और वापस आतंकियों की ओर उछाल दिया था।

इसके कुछ साल बाद उन्हें कश्मीर के कुपवाड़ा में भेजा गया। जहां उन्होंने आंतकियों का काम तमाम करना जारी रखा। उन्होंने एरिया कमांडर आतंकी मजीद खान का खात्मा किया। अपनी वीरता तथा शौर्य के लिए उन्हें सेना मेडल से सम्मानित किया गया। 1999 के आते-आते नायक दिगेंद्र कुमार उर्फ कोबरा सेना के बेहतरीन कमांडों में गिने जाने लगे थे। इसी वर्ष 13 जून के दिन जो हुआ उसने दिगेंद्र कुमार को जीते जी अमर कर दिया।

उन्होंने 15,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित तोलोलिंग की चोटी और पोस्ट जीता बल्कि उस पर तिरंगा लहराकर हिंदुस्तान को पहली बड़ी और महत्वपूर्ण कामयाबी दिलाई। इस अभियान के दौरान उन्हें पांच गोलियां लगीं, लेकिन वे न रुके, न थके, न अटके, न भटके और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते चले गए। उनकी राह में जो भी आया, उसका फुर्ती के साथ खात्मा करते गए।

जब दिगेंद्र पहला बंकर उड़ाने के लिए रात के अंधेरे में दुश्मन के बंकर में घुस गए थे तभी इसकी भनक लगते ही दुश्मन ने ताबड़तोड़ फायरिंग की। उस दौरान उन्हें चार गोलियां लगीं। इनके अलावा दो गोली उनकी एके 47 पर लगीं थीं, जो हाथ से छूट गई थी। उस वक्त अपनी सूझबूझ से घायल दिगेंद्र ने अपना और अपने साथियों की हिफाजत का ख्याल रखते हुए तुरंत एक ग्रेनेड उस बंकर में फेंक दिया। इसके बाद अचानक से पीछे से हमला हुआ और कई साथी गंभीर घायल हो गए। फिर उनकी कंपनी ने उन 30 हमलावरों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।

वहीं दिगेंद्र कुछ साथियों के साथ आगे बढ़ते रहे और बीच-बीच में स्टेरॉयड युक्त पेनकिलर के इंजेक्शन का इस्तेमाल करते रहे। ऐसा करके दिगेंद्र और उनकी टीम ने पूरे 11 बंकर तबाह कर दिए थे। इस बीच, सुबह चार बजे उनके आखिरी साथी सरदार सुमेर सिंह राठौड़ को भी गोली लग चुकी थी। फिर उसकी एलएमजी लेकर दिगेंद्र पहाड़ी की ओर आगे बढ़े, तब उन्हें रास्ते में पाकिस्तानी सेना मेजर अनवर खान दिखाई दिया।

दोनों का आमना-सामना हुआ तो दिगेंद्र एलएमजी से एक ही गोली चला पाए थे, तभी अनवर खान ने उन पर अपनी पिस्तौल से गोली दागी जो दिगेंद्र के कमर के नीचे पांव में लगी। इसके बाद अनवर ने दिगेंद्र के ऊपर झपट्टा मारा किंतु दिगेंद्र ने उसका गला पकड़ कर रखा और अपना खंजर निकालकर झटके से उसकी गर्दन उड़ा दी।

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