राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy) में भाषा और साहित्य शिक्षण के आयाम
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy) में भाषा और साहित्य शिक्षण के आयाम
रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह
- मातृभाषा हमारी विरासत और पहचान को करती है परिभाषित
वाराणसी, 10 मार्चः हिंदी विभाग, वसंत महिलामहाविद्यालय, राजघाट, वाराणसी तथा महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में शिक्षा विद्यापीठ पंडित मदन मोहन मालवीय राष्ट्रीय शिक्षक एवं शिक्षण अभियान, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत आयोजित द्वि साप्ताहिक अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला के दसवें दिन के पहले सत्र में डॉ. भगवान शर्मा (पूर्व अध्यक्ष हिंदी विभाग, सेंट जॉन्स स्नात्तकोत्तर एवं शोध कॉलेज, आगरा) ने अपने विषय राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा शिक्षण का महत्व पर अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि इस नीति का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के बौद्धिक, सामाजिक भावनात्मक एवं शारीरिक क्षमताओं को जानना है। इसमें संप्रेषण कला और कौशल विकास को अनिवार्य पाठ्यक्रम के अंतर्गत रखने का लक्ष्य रखा गया है।
मातृ भाषा अभिव्यक्ति की सशक्त माध्यम एवं संस्कृति की सजीव संवाहिका होती है। मातृभाषा केवल संवाद का ही माध्यम नहीं है अपितु हमारी विरासत एवं पहचान को भी परिभाषित करती है। यदि हम अपनी शिक्षा प्रणाली को विश्वस्तरीय बनाना चाहते हैं तो हमें अपनी शिक्षा पद्धति को मातृभाषा के माध्यम से अभिमंडित करना होगा।
द्वितीय सत्र में डॉ. आशीष कंधवे (संपादक “गगनांचल” भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार) ने अपने विषय “शब्दकोश निर्माण और भाषा की सामाजिकता” पर कहा कि हम सभी को “शब्दकोश” को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाना चाहिए तथा प्रतिदिन 15 मिनट शब्दकोश देखने का अभ्यास करना चाहिए।
भाषा मन और इंद्रियों का व्यापार है। यह मनुष्य की आंतरिक प्रक्रिया को प्रकृति के बाह्य तत्वों से जोड़ता है। भाषा में मनुष्य के भाव, विचार, संवेदना, रचनाशीलता, उद्भावना को उद्भाषित करने का अदम्य साहस है।भाषा सामाजिक परिवेश को अपने भाषिक परिवेश से परिभाषित करती है।
तृतीय सत्र में हैदराबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो.गजेंद्र कुमार पाठक ने कहा मातृ भाषाओं के बल पर हम क्या नहीं कर सकते। उन्होंने नागार्जुन का संदर्भ लेकर बहुभाषिकता को राष्ट्र के लिए जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि हमारी भक्ति कविता ने ब्रजभाषा की ओर सभी का ध्यान केंद्रित किया।
प्रो.कृष्ण कुमार सिंह (हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग, साहित्य विद्यापीठ, म. गां.अं. हिंदी विश्वविद्यालय,वर्धा) ने अपना वक्तव्य नई शिक्षा नीति के आलोक में तुलनात्मक अध्ययन पर दिया। उन्होंने कहा भारतीय भाषाओं में संरचना के स्तर पर विभिन्नता है लेकिन सांस्कृतिक धरातल पर ये समान हैं।
भारतीय भाषाओं में लिखित साहित्य का संरक्षण जरूरी है क्योंकि ये हमें एकता के सूत्र में बांधते हैं। आपने आगे कहाँ कि भारतीय साहित्य स्वयं एक तुलनात्मक अवधारणा है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. मिलन रानी जमातिया एवं डॉ. थेसो कोरपी ने किया। कार्यक्रम की संयोजक डॉ. बंदना झा ने अतिथियों का स्वागत तथा धन्यवाद ज्ञापन किया।
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