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Political characters: झूठ बोल-बोल कर सच कीजिए… यू हुनर हो तो सियासत कीजिए…..

“सियासत के किरदार”(Political characters)

झूठ बोल-बोल कर सच कीजिए…
यू हुनर हो तो सियासत कीजिए…..

सुना है •••
छप के बिकते थे जो अखबार…
इन दिनों वो बिक के छपा करते हैं।
ये रूतवा, ये दबदबा, ये हुकूमत, ये नशा, ये दौलत…
सब किरायेदार हैं घर बदलते रहते हैं ।।

सराफत का चोला ओढ़े नज़र आते है वो,
कितनी साफ है सियासत उनकी ये कौन बताएगा ।
जरूरत पड़े तो बहाते हैं मगरमच्छ के आँसू ,
ये खबर उनका अखबार नहीं तो कौन बताएगा ।।

लगी है चोट, छपी है खबर हेडलाइन्स बनकर ।
ये खबर उनका अखबार नहीं तो कौन बताएगा ।।

होते है सडकों पर दंगे, तो पूरे होते है इनके ख्वाब।
ये खबर उनका अखबार नहीं तो कौन बताएगा।।

कब निकलेगा उनके घर का कुता टहलने के लिए ।
ये खबर उनका अखबार नहीं तो कौन बताएगा।।

देते हैं हर युवाओं को रोजगार की दिलासा।
ये खबर बेरोजगारो को, उनका अखबार नहीं तो कौन बताएगा ।।

सियासत के किरदार बदलते रहे मगर नाटक वही पुराना चलता रहा ।
ये खबर जनता को, उनका अखबार नहीं तो कौन बताएगा ।।

सियासत की तोहमतों पर इल्जाम कौन लगाएगा।
ये खबर उनका अखबार नहीं तो कौन बताएगा।।

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