Program on E waste Management

Program on E-waste Management: आईआईटी बीएचयू में ई-कचरा प्रबंधन पर महत्वपूर्ण कार्यक्रम

Program on E-waste Management: वैश्विक प्रॉब्लम ई-कचरा पर, प्रोफेसर कमलेश सिंह का विशिष्ट व्याख्यान

रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह

वाराणसी, 19 अक्टूबर: Program on E-waste Management: भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) में बुधवार को स्वच्छता पखवाड़ा 3.0 के अंतर्गत ऐनी बेसेंट लेक्चर थियेटर में छात्रों और कर्मचारियों के लिए ई-कचरा प्रबंधन पर विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन किया गया। यह व्याख्यान मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर कमलेश कुमार सिंह द्वारा किया गया।

इस अवसर प्रोफेसर कमलेश कुमार सिंह ने बताया कि, उपयोग में न आने वाले अथवा खराब पड़े इलेक्ट्रिक्स और इलेक्ट्रिॉनिक्स उपकरण ई-कचरा कहलाते हैं। भारत देश में वर्ष 2014 में 1.3 मिलीयन टन ई-कचरा निकला जो वर्ष 2015 में 1.7 मिलीयन टन हो गया। यह उम्मीद से बहुत ज्यादा है।

इस ई-कचरे का मात्र 20 प्रतिशत भाग ही अधिकृत स्थानों पर रिसाइकिल हो रहा है। जबकि 4 प्रतिशत कूड़े में और बाकी का 76 प्रतिशत अवैध तरीके से रिसाइकिल हो रहा है। जो ई-कचरा कूड़े में पड़ा है उससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है और जो ई-कचरा अवैध तरीके से रिसाइकिल हो रहा है उसमें सुरक्षा उपकरणों को ध्यान में नहीं रखा जा रहा है जिससे इस प्रक्रिया में शामिल लोगों को कुछ ही वर्षों के अंदर टीबी, कैंसर जैसी बीमारियों से जूझना पड़ रहा है।

उन्होंने आगे बताया कि दुनिया भर में हुए शोधों से यह ज्ञात हुआ है कि ई-कचरा जैसे टीवी, कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल, डीवीडी, कैलकुलेटर आदि में सिर्फ नुकसान पहुंचाने वाले तत्व प्लास्टिक, शीशा ही नहीं बल्कि कई बहुमूल्य तत्व जैसे लिथियम, सोना, चांदी, कॉपर, एल्यूमिनियम आदि भी पाए जाते हैं।

उन्होंने यह बताया कि 1 टन पत्थर काटने पर 1-5 ग्राम सोना निकलता है मगर 1 टन ई-कचरा (स्मार्टफोन, कंप्यूटर, लैपटॉप) में 100 से 300 ग्राम सोना भी निकल सकता है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में गहनों के लिए पसंद बन रहे टैंटलम मेटल और लिथियम भी ई-कचरे से मिल रहा है।

वर्तमान परिदृश्य में इलेक्ट्रॉनिक वाहनों की मांग बढ़ रही है। ऐसे में 2050 तक लिथियम की मांग तीन गुना तक बढ़ जाएगी। ऐसे में अगर शहरों और ग्रामीण स्तर पर ई-कचरा कलेक्शन सेंटर बनाए जाएं तो इससे न सिर्फ रोजगार के लिए बेहतर विकल्प बनेगा बल्कि ई-कचरा से पर्यावरण को होने वाले नुकसान से भी बचाया जा सकता है।

उन्होंने छात्रों, कर्मचारियों से अपील किया कि अगर आप इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का कम से कम उपयोग करें, ज्यादा से ज्यादा रिपेयर कराएं और पुनः उपयोग में लाने वाले उपकरणों का उपयोग करें तो पर्यावरण बचाने में आपका योगदान किसी साइंटिस्ट से कम नहीं होगा।

कार्यक्रम का संचालन और धन्यवाद ज्ञापन उपकुलसचिव मेजर निशा बलोरिया ने किया। इस अवसर सहायक कुलसचिव प्रशासन रवि कुमार, प्रशासनिक अधिकारी, कर्मचारी व भारी संख्या मे छात्र-छात्राएं उपस्थित रहें।

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