National workshop in varanasi: वाराणसी में मानव मूल्यों, मानवीय श्रेष्ठता और उच्चस्तर शिक्षा पर राष्ट्रीय कार्यशाला
- मन का भटकाव ही मानव जीवन के पतन का कारण…. प्रोफेसर श्रीकांत मूर्ति
National workshop in varanasi: वसंत महिला महाविद्यालय और सत्य साईं विश्वविद्यालय कर्नाटक के संयुक्त तत्वावधान में पंच दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ
रिपोर्टः डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 26 अप्रैलः National workshop in varanasi: मन का भटकाव ही मानव जीवन के भटकाव का मूल कारण है। अतः योग के माध्यम से चित्त वृत्ति निरोध का अभ्यास करना ही उचित है। उक्त विचार श्री सत्य साईं विश्वविद्यालय, कलाकबुर्जी, कर्नाटक के उपकुलपति प्रोफेसर श्रीकांत मूर्ति ने वसंत महिला महाविद्यालय के द्वारा आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला (National workshop in varanasi) में व्यक्त किया।
पांच दिवसीय यह राष्ट्रीय कार्यशाला मानव मूल्यों, मानवीय श्रेष्ठता और उच्चस्तर शिक्षा विषय पर, इन्टर्नल क्वालिटी एश्योरेंस सेल, वसंत महिला महाविद्यालय, केएफआई, राजघाट, वाराणसी और मानवीय श्रेष्ठता के लिए श्री सत्य साईं विश्वविद्यालय, नवनिहाल कमलापुर, तालुक कलाकबुरगी, कर्नाटक के संयुक्त तत्वावधान में प्रारम्भ हुआ। कार्यशाला का यूट्यूब के माध्यम से सीधा प्रसारण भी किया गया। शुभारंभ श्री सत्य साईं विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के सुन्दर वैदिक मंत्रोच्चार से हुआ।
National workshop in varanasi: अतिथियों का स्वागत करते हुए महाविद्यालय की डाइनामिक प्राचार्या प्रो.अलका सिंह ने मानवीय मूल्यों और मानवता के महत्व पर जोर दिया। प्रो.मिनाक्षी बिस्वाल, शिक्षा विभाग, वसंत महिला महाविद्यालय ने कार्यशाला के मुख्य विषय…..” मानव जन्म मानवीय मूल्यों को विकसित करने और मानवीय श्रेष्ठता को प्राप्त करने के लिए हुआ है”,….” हमें पशु से मानव और मानव से दैवीय मानव बनना चाहिए, ”आदि पर अपने विचार प्रस्तुत किया।
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डॉ.नवीन भट्ट, विभागाध्यक्ष संस्कृत एवं वेद विभाग, श्री सत्य साईं विश्वविद्यालय ने मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता का परिचय दिया। मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता उपकुलपति प्रो.श्रीकांत मूर्थि ने श्री सत्य साईं विश्वविद्यालय के ध्येय वाक्य, ” योगः कर्मसु कौशलम् ” के आशय और मानवीय उत्थान में योग के महत्व पर अपने बहुमूल्य विचार साझा किया।
उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि, ”जिस प्रकार एक चींटी अपना घर बनाने के लिए तब तक अथक प्रयास करती है, जब तक की वह पूर्णता न प्राप्त कर लें। उसी प्रकार मानव जीवन का लक्ष्य भी, इसी पूर्णता को प्राप्त करना है, जिसके लिए मानव को अथक प्रयास करना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि पूर्णता का लक्ष्य केवल योग से ही प्राप्त किया जा सकता हैं। पूर्ण होने पर ही व्यक्ति स्वार्थरहित होकर कार्य कर सकता हैं।
National workshop in varanasi: अंत में कुछ प्रतिभागियों ने कार्यशाला में अपनी समझ को साझा किया। संचालन डॉ योगिता बेरी और औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन, कार्यक्रम संयोजिका, प्रो.सीमा श्रीवास्तव, मनोविज्ञान विभाग, वसंत महिला महाविद्यालय द्वारा दिया गया।