Filariasis medicine: उत्तरप्रदेश सरकार का फाइलेरिया अभियान, लोगों को मुफ्त में दी जा रही दवाइयां

Filariasis medicine: मऊ जिले में 3 लाख 47 हजार लोगों ने खाई फाइलेरिया की दवा 

रिपोर्टः पवन सिंह

मऊ, 25 नवंबरः Filariasis medicine: फाइलेरिया संक्रमण से बचने के लिए आज कल मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) राउंड चल रहा है। इस अभियान के तहत मऊ जिले में कुल 21 लाख 60 हजार आबादी निःशुल्क दवा खिलाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ श्याम नारायण दुबे ने बताया फाइलेरिया की दवा बहुत ही सुरक्षित दवा है। शरीर पर इसका कोई भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। जिले में अब तक कुल 3 लाख 47 हजार लोगों को फाइलेरिया की दवा खिलाई जा चुकी है।

Filariasis medicine: दवा पेट में कृमियों को समाप्त करने के लिए दी जाती है। पेट में अधिक कीड़े या कृमि होने और फाइलेरिया का संक्रमण जिनमें होता है, उनमें दवा देने पर व्यक्तियों को प्रतिकूल प्रभाव जैसे हल्का चक्कर, थोड़ी घबराहट या उल्टी हो सकती है, जो दो से चार घंटे में स्वतः ही समाप्त हो जाती है। अगर जिन्हें इस वर्ष दवा के वजह से कुछ परेशानी हुई तो उसे अगले वर्ष इस दवा को खाने पर, यह प्रभाव नहीं परिलक्षित होंगे, क्योंकि कि बच्चे दोनों रोग कृमि और फाइलेरिया के संक्रमण से मुक्त हो चुके होंगे।

Mau filaria medicine

अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी नोडल डॉ आरवी सिंह ने बताया कि दवा के थोड़े प्रतिकूल प्रभाव दिखने पर घबराने की आवश्यकता नहीं है, व्यक्ति को थोड़े समय के लिए खुली हवा में लेटा दें व पानी पिला दें। कुछ समय में दवा खाने वाला व्यक्ति सामान्य अवस्था में आ जाता है। यह दवा सभी को नियमानुसार खानी अनिवार्य है। इस दवा के सेवन ना करने से पेट में होने वाले कीड़े या कृमि से व्यक्तियों के शरीर में खुराक नहीं लगती और व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर होने लगता है।

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Filariasis medicine: आदमी के कमजोर शरीर में विभिन्न प्रकार की बीमारियां होने लगती हैं। डॉ आरवी सिंह ने बताया कि दवा देते समय यह सावधानी बरतें कि एल्बेंडाजोल दवा देते समय व्यक्ति खाली पेट न हो अर्थात बच्चे ने दवा लेने से पूर्व कुछ न कुछ भोजन अवश्य किया हो। दवा देने वाले दिन अपने बच्चों को कुछ न कुछ भोजन खिलाकर भेजें।

जिला मलेरिया अधिकारी बेदी यादव ने बताया कि फाइलेरिया और कृमि नाशक दवा पूरे जनपद के व्यक्तियों को खिलाई जा रही है। दो से दस वर्ष के बच्चों को भी ध्यान में रख कर अभियान चलाया जा रहा है, क्यों कि इन बच्चों में संक्रमण ज्यादा और सुसुप्ता अवस्था में होता है जो 20 से 25 वर्ष बाद में इस रोग का असर दिखाई देता है उस समय तक यह रोग लाइलाज हो कर काबू से बाहर हो जाता है।

इनको शुरुआती समय में ही दवा के माध्यम से निष्क्रिय कर दिया जाये तो आदमी भविष्य में होने वाले इस संभावित रोग से बच जाता है। बच्चों पर दवा का प्रतिकूल प्रभाव यह बताता है कि उस बच्चे में और उस क्षेत्र में फाइलेरिया का संक्रमण है और यह भी देखा गया है कि उस गाँव में दो चार हाथीपाव के मरीज जरुर मिल जाते हैं। ऐसे में सभी को अपने गाँव की आशा से इस दवा का सेवन अवश्य करना चाहिये। 

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