Biscope Film Forum

Biscope Film Forum: बीएचयू में बाइस्कोप फिल्म फोरम का उद्घाटन

Biscope Film Forum: सी एस डी एस के प्रोफेसर रविकांत का रोचक व्याख्यान

रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह

वाराणसी, 19 अगस्त: Biscope Film Forum: ‘बाइस्कोप: बी.एच.यू. फिल्म फोरम’ के उदघाटन के अवसर पर मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र एवं अन्तर-सांस्कृतिक अध्ययन केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान आयोजित द्वि-दिवसीय संगोष्ठी में सी एस डी एस के प्रोफ़ेसर रविकांत का रोचक व्याख्यान हुआ। द्वितीय दिवस की संगोष्ठी का विषय था-‘सिनेमा-रेडियो जुगलबंदी, 1930-80’।

इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं वक्ता सी.एस.डी.एस., दिल्ली के प्रो. रविकान्त ने अपने उद्बोधन में कहा कि ‘आम जनता कैसे सिनेमा को सराहती है इसे समझने के क्रम में मैंने सिनेमा से संबंधित अभिलेखागार बनाने का प्रयास किया। उन्होने बताया कि, मनोहर महाजन जैसे रेडियो जॉकी ने कहा था कि रेडियो भारत और पाकिस्तान के बीच पुल का काम करता था।

शरद जोशी ने झुमरीतिलैया जैसे स्थान को भारतीय फिल्म संगीत की आत्मा से जोड़ा। प्रसिद्ध साहित्यकार लीलाधर मंडलोई ने कहा था कि अगर रेडियो न होता तो सिनेमा के सौ सालों का इतिहास इतना सुनहरा शायद ही होता। लखनऊ के कन्हैया लाल पाण्डेय ने एक ऐसा इंसाइक्लोपीडिया बनाया है जिसमें बताया गया है कि किस फिल्म का कौन सा गाना किस शास्त्रीय राग पर आधारित है।

डेविड लेलिवेल्ड ने भारतीय रेडियो प्रसारण पर बहुत ही अच्छी किताब लिखी है। आपने कहा कि सिनेमा एक जीवंत अभिलेखागार है जिसमें पोशाक, भोजन, भवन, शहर, भाषा सभी कुछ संग्रहीत रहता है। रेडियो का सिनेमा से एक गहरा जुड़ाव रहता है जो समाज के विभिन्न तबकों तक मनोरंजन के साथ सूचना और ज्ञान का प्रकाश भी पहुंचाता है।

अपने व्याख्यान के क्रम में प्रो. रविकांत ने रेडियो पर प्रसारित कुछ कार्यक्रमों की झलकियां सुनाई तथा भारतीय सिनेमा के इतिहास के महत्त्वपूर्ण क्षणों को रूपायित करती फिल्मों के कुछ हिस्से दिखाए- जैसे ऐक्ट्रेस, अपराधी, बरसात की रात इत्यादि। कई फिल्मों में रेडियो पर कार्यक्रम प्रस्तुत करते हुए कलाकारों को दिखाया गया है जो रेडियों के महत्त्व को दर्शाता है। रेडियो के प्रति दीवानगी को भी कई फिल्मों में दिखाया गया है जो एक अलग तरह की फैंटेसी का निर्माण करता है।’

कार्यक्रम के अंत में आपने विद्यार्थियों के प्रश्नों का उत्तर भी दिया। अंत में धन्यवाद देते हुए अन्तर-सांस्कृतिक अध्ययन केन्द्र के समन्वयक प्रो. राजकुमार ने कहा कि साहित्य, नाट्य विधा और सिनेमा सभी आपस में गहरे अंतरसंबंधित हैं जिनके माध्यम से हम ज्ञान और चेतना का बेहतर प्रसार कर सकते हैं।

कार्यक्रम संचालन डॉ. गीतांजलि सिंह ने किया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के वरिष्ठ सलाहकार प्रो. कमलशील, आर. पी. मल्होत्रा, प्रो. वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी, डॉ. धर्मजंग, डॉ. राजीव कुमार वर्मा, डॉ. प्रियंका झा, डॉ. विपिन कडवक, डॉ. दीपाली यादव, डॉ. अमित पाण्डेय एवं बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित थे।

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