फसल के अवशेष जलाने की समस्या से निपटने को लेकर नई तकनीक पूसा डीकंपोजर

  • भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा के वैज्ञानिकों ने सीएम अरविंद केजरीवाल को फसल के अवशेष जलाने की समस्या से निपटने को लेकर नई तकनीक पूसा डीकंपोजर की प्रस्तुति दी
  • दिल्ली में सर्दियों के मौसम में फसल के अवशेष प्रदूषण का प्रमुख स्रोत हैं, मैं आईएआई के वैज्ञानिकों को पराली जलाने से निपटने के लिए कम लागत वाली प्रभावी तकनीक विकसित करने के लिए बधाई देता हूं, सरकारों को पराली जलाने की समस्या के समाधान के लिए वैज्ञानिकों के साथ मिलकर काम करने की जरूरत है- सीएम श्री अरविंद केजरीवाल
  • सीएम श्री अरविंद केजरीवाल इस नई तकनीक के प्रदर्शन को देखने के लिए कल 24 सितंबर को पूसा परिसर का दौरा करेंगे
  • सीएम श्री अरविंद केजरीवाल ने विकास विभाग के अधिकारियों को लागत का विस्तृत विश्लेषण करने और बाहरी दिल्ली के सभी खेतों में इस तकनीक के इस्तेमाल करने का पता लगाने के निर्देश दिए हैं
  • पूसा डीकंपेजर एक कैप्सूल है, जिसे आसानी से उपलब्ध इनपुट के साथ मिलाया जा सकता है, फसल वाली खेतों में छिड़काव किया जाता है और फसल के डंठल के शीघ्र विघटन को सुनिश्चित करने और जलाने की आवश्यकता को रोकने के लिए खेतों में छिड़काव किया जाता है


रिपोर्ट: महेश मौर्य,दिल्ली

नई दिल्ली, 23 सितंबर, 2020: एआरएआई, पूसा, नई दिल्ली के निदेशक डॉ. एके सिंह और एआरएआई के कई वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने पूरे उत्तर भारत में सर्दियों के महीनों में वायु प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत कृषि अवशेषों के निस्तारण को लेकर संस्थान द्वारा विकसित की गई नई तकनीक के संबंध में आज मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सामने प्रस्तुति दी। आईएआई द्वारा विकसित इस नई तकनीक की सराहना करते हुए सीएम श्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, ‘दिल्ली में ठंड के मौसम में प्रदूषण का प्रमुख स्रोत धान की पराली और फसल के अन्य अवशेष हैं। मैं आईएआई के वैज्ञानिकों को फसल के अवशेष जलाने की समस्या से निपटने के लिए कम लागत वाली प्रभावी तकनीक विकसित करने के लिए बधाई देता हूं। सरकारों को फसल के अवशेष को जलाने की समस्या का समाधान करने के लिए वैज्ञानिकों के साथ मिल कर काम करने की जरूरत है।’ इस बैठक में पर्यावरण एवं विकास मंत्री श्री गोपाल राय, विकास विभाग के अधिकारी और डीडीसी भी मौजूद रहे।

loading…

यह तकनीक पूसा डीकंपेजर कही जाती है, जिसमे आसानी से उपलब्ध इनपुट के साथ मिलाया जा सकता है, फसल वाली खेतों में छिड़काव किया जाता है और 8-10 दिनों में फसल के डंठल के विघटन को सुनिश्चित करने और जलाने की आवश्यकता को रोकने के लिए खेतों में छिड़काव किया जाता है। कैप्सूल की लागत केवल 20 रुपये प्रति एकड़ है और प्रभावी रूप से प्रति एकड़ 4-5 टन कच्चे भूसे का निस्तारण किया जा सकता है। पंजाब और हरियाणा के कृषि क्षेत्रों में पिछले 4 वर्षों में एआरएआई द्वारा किए गए शोध में बहुत उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं, जिससे पराली जलाने की जरूरतों को कम करने और साथ ही उर्वरक की खपत कम करने और कृषि उत्पादन बढ़ाने के नजरिए से इसका उपयोग करने से लाभ मिला है।

इसकी प्रभावी क्षमता और आसानी से इस्तेमाल की जा सकने वाली इस तकनीक से प्रभावित होकर सीएम अरविंद केजरीवाल ने 24 सितंबर को एक लाइव डेमोस्ट्रेशन के लिए पूसा परिसर का दौरा करने का फैसला किया है। उन्होंने विकास विभाग के अधिकारियों को लागत लाभ का विस्तृत विश्लेषण करने और बाहरी दिल्ली के सभी खेतों में इस तकनीक के कार्यान्वयन का पता लगाने के निर्देश भी दिए हैं, जो फसल के अवशेष की समस्या का सामना करते हैं।