कटहल – अल्सर का उपाय
- वानस्पतिक नाम-Artocarpus heterophyllus (आर्टोकार्पस हेटेरोफिलस) कुल- मोरेसी (Moraceae)
- हिन्दी- कटहल, कंठाल, फनास
- अंग्रेजी- जैक फ्रूट (Jack Fruit) संस्कृत- फनासा, अतिब्रिहतफला
ग्रामीण अंचलों में सब्जी के तौर पर खाया जाने वाला कटहल कई तरह के औषधीय गुणों से भरपूर है। कटहल का वानस्पतिक नाम आट्टोंकार्पस हेटेरोफिल्लस है। कटहल के फलों में कई महत्त्वपूर्ण प्रोटीन्स, कार्बोहाइड्रेट्स के अलावा विटामिन्स भी पाए जाते हैं। सब्जी के तौर पर खाने के अलावा कटहल के फलों का अचार और पापड़ भी बनाया जाता है। पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार पके फलों का ज्यादा मात्रा में सेवन करने से दस्त होने की संभावना होती है। कटहल की पत्तियों की राख अल्सर के इलाज के लिये बहुपयोगी होती है।
पके हुए कटहल के गूदे को अच्छी तरह से मैश करके पानी में उबाला जाए और इस मिश्रण को ठंडा कर एक गिलास पीने से जबरदस्त स्फूर्ती आती है, वास्तव में यह एक टॉनिक की तरह कार्य करता है। यही मिश्रण यदि अपचन से ग्रसित रोगी को दिया जाए तो उसे फायदा मिलता है। फल के छिल्कों से निकलने वाला दूध यदि गाँठनुमा सूजन, घाव और कटे-फटे अंगों पर लगाया जाए तो आराम मिलता है। डाँग-गुजरात के आदिवासी कटहल की पत्तियों के रस का सेवन करने की सलाह मधुमेह (डायबिटीज) के रोगियों को देते हैं। यही रस उच्च-रक्तचाप के रोगियों के लिये भी उत्तम है। कटहल पेड़ की पत्तियों की कलियाँ कूट कर गोली बना लें और इस गोली को चूसने से स्वरभंग व गले के रोग में फायदा होता है।