Dalai Lama 2

संघर्ष की दुनिया में करुणा के अन्वेषी

Girishwar Misra
प्रो. गिरीश्वर मिश्र, पूर्व कुलपति
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय

”दलाई लामा के जन्मदिन पर विशेष”

तिब्बत के पूर्वोत्तर हिस्से में आज से पचासी साल पहले जन्मे बौद्ध धर्म गुरु और आध्यात्मिक व्यक्तित्व के धनी परमपावन दलाई लामा ने जीवन का अधिकांश भाग भारत में शरणार्थी के रूप में बिताया है . 1889 में नोबुल शांति पुरस्कार से नवाजे गए इस अप्रतिम व्यक्तित्व ने पंद्रह वर्ष की आयु में चौदहवें दलाई लामा के पद पर विधिवत अभिषिक्त हो कर गेलग सम्प्रदाय के शासन के सर्वोच्च बने थे. चीन द्वारा कब्जा करने के बाद सब कुछ छोड़ कर उन्हें भारत में शरण लेनी . तब से लेकर आज तक निजी जीवन और दुनिया में उन्होने जाने कितने उतार चढाव देखे . चीन की विस्तारवादी क्रूरता के चलते ल्हासा के पोटाला महल से विस्थापित होकर उन्होने भारत में रहते हुए तिब्बत के अस्तित्व की लड़ाई लड़ी , विश्व में खूब भ्रमण किया और बड़े राजनेताओं , धर्म गुरुओं , विद्वानों और आम जनों सबके सम्पर्क में आते रहे. वे एक बौद्ध चिंतक और मानवता के सेवक के रूप में अपना महत्व्पूर्ण स्थान बनाया है. वे मानते हैं कि दुनिया में बड़े परिवर्तन आए हैं , गरीबी दूर हुई है , शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं भी बढी हैं.

Dalai Lama

मानव अधिकार , स्वतंत्रता और लोकतंत्र के विचार सुदृढ हुए हैं. कई सकारात्मक परिवर्तन हुए हैं परंतु मानवता के दुख और पीड़ा के कई नए आयाम भी उभरे हैं. जहां अमीर देशों में लोग उपभोग प्रधान जीवन शैली अपना रहे हैं तो करोड़ों लोग मूलभूत आवश्यकताएं भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं. सशस्त्र संघर्ष अभी भी जारी है. पर्यावरण की समस्याओं और रोजी रोटी के मसलों से लोग जूझ रहे हैं. असमानता , भ्र्ष्टाचार और अन्याय अभी भी बड़े मुद्दे बने हुए हैं. यह हाल न सिर्फ विकास शील देश में है बल्कि विकसित देशों में भी है. घरेलू हिंसा, और शराबखोरी पारिवारिक बिखराव खूब बढ रहा है. दलाइ लामा इन सबसे चिंतित हैं क्योंकि इन सबके साथ मनुष्य के आचरण से इस पृथिवी को ही खतरा बढ रहा है. दलाई लामा केअनुसार हमारे सोचने के तरीके और आचरण में कुछ खोट आ चुकी है बाह्य , भौतिक जीवन की ओर तो ध्यान जा रहा है पर नैतिक और आंतरिक मूल्यों की ओर हम उपेक्षा की दृष्टि से देखते हुए नजर अंदाज करते रहे हैं. इनमें सबसे महत्वपूर्ण है करुणा (कम्पैशन) .

मानव स्वभाव, और नैतिकता की तलाश करते हुए दलाई लामा एक सार्वभौम दायित्व का विचार रखते हैं क्योंकि सभी मनुष्य खुशहाली और आनंद की कामना करते हैं. सुख की चाह और दुख को दूर करना सामान्य इच्छा है. तभी अधिक सहिष्णुता और दूसरों की स्वीकृति हो सकेगी. इसके लिए मानव जीवन में पारस्परिक सहयोग अनिवार्य है. जो भी जिस भूमिका में है उसकी भूमिकाओं और दायित्वों के बीच पारस्परिक निर्भरता और पारस्परिक सहयोग अनिवार्य है. बिना सहयोग के कोई समाज चल नहीं सकता. दलाई लामा करुणा के भाव को मानव स्वभाव का अभिन्न अंग मानते हैं और इसे सहयोग की आधारशिला के रूप में देखते हैं. मातापिता और शिशु के बीच का सम्बन्ध स्वाभाविक रूप से भावात्मक होता है. इस तरह करुणा का भाव मानव जीवन की एक नैसर्गिक स्थिति है तथापि इसको विकसित करने की जरूरत है. बच्चों के लिए नैतिक शिक्षा अनिवार्य रूप से रखनी चाहिए. तभी वे बड़े हो कर समाज और समग्र मानवता को योगदान दे सकेंगे. करुणा और परोपकार के गुण विकसित कर के ही मनुष्यता की रक्षा हो सकेगी. भावनाएं मानव स्वभाव के लिए आधार का काम करती हैं. उनके बिना एक व्यक्ति के रूप में सुख या संतुष्टि बेमानी हो जाती है. सभी व्यवसाय अंतत: मानव सेवा के लिए ही होते हैं.

Dalai Lama 2

भाव ही मूल मानवीय गुण है. धर्म विशेष की बाध्यताओं से दूर व्यापक करुणा का भाव सबके लिए समान रूप से लागू होता है. यह वैश्विक नैतिकता का एक सबल और ‘सेकुलर’ आधार है. दलाई लामा के अनुसार यह ऐसा आंतरिक मूल्य है जो आपसी सौहार्द का आधार बन सकता और शांति तथा सुख की राह बना सकता है. विगत वर्षों में दलाई लामा ने विश्व के विभिन्न वैज्ञानिकों के साथ नमन , स्वास्थ तथा संवेगों को ले कर गहन विचार विमर्श किया है धर्मशाला में इस तरह के अनेक संवाद आयोजित हुए हैं जिनसे पूर्व और पश्चिम के बीच विचार विमर्श के दौर चलते रहे हैं और कई महत्वपूर्ण प्रकाशन आए हैं. करुणा और शांति के इस प्रवक्ता को शत शत नमन ! उनका आध्यात्मिक आलोक मानवता के लिए मार्ग दर्शन में सहायक बना रहे.

*यह लेखक के अपने विचार है।

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