Ishq: “इश्क का बुखार उतार के जा रहे हैं!”
Ishq: !!इश्क!!
रास्तों पर भटक जाना लाजमी है मगर।
सर मंजिलें कर भटकना कोई हमसे सीखे।।
इस उम्र में इश्क की पीड़ा वाकई लाजवाब है।
दर्द के साथ इश्क और इश्क के साथ दर्द बेहिसाब है।।
हर एहसास दिल में ना दबा देना तुम।
कभी होठों से जरा मुस्कुरा भी देना तुम।।
घबराना मत गर हो इश्क बुखार तो तुम।
आंखों ही आंखों में मुस्कुरा देना तुम।।
वे देखकर मुझे, मुझसे नजरें छुपा कर जा रहे हैं।
हम पर बिजली गिरा के, व खुब मुस्कुरा कर जा रहे हैं।।
वो लूट कर मेरा जहां जा रहे हैं।
इल्जाम लगाऊं मैं कैसे उन पर।।
बातें, वादे, यादें जो करते थे मोहब्बत के मुलाकातें।
वो आज नजरें चुरा के व इश्क का बुखार उतार के जा रहे हैं।।
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