Yuva dharma sansad in ayodhya: अयोध्या में युवा धर्म संसद के प्रथम सत्र में विद्वानों के सारगर्भित व्याख्यान
Yuva dharma sansad in ayodhya: अयोध्या के नाम से चिढ़ने वाले अब आ रहे अयोध्या …. हृदयनारायण दीक्षित
- राम को समझने के लिए काफी नहीं अयोध्या … साहित्यकार यतींद्र मिश्र
रिपोर्टः डॉ राम शंकर सिंह
अयोध्या, 18 सितंबर: Yuva dharma sansad in ayodhya: महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रोफेसर रजनीश शुक्ल ने कहा कि जिसमें साहित्य, संगीत एवं कला हैं, वे ही मनुष्य हैं। भारत की राष्ट्रीयता केवल भारतीय बनाने के यत्न तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संपूर्ण मनुष्य बनाने का यत्न है। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में राष्ट्र का चिंतन केवल सभ्यता के संदर्भ में है।
प्रोफेसर शुक्ल अयोध्या स्थित डा. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में सेवाज्ञ संस्थानम् एवं श्री राम शोध पीठ के संयुक्त तत्वावधान में चल रहे दो दिवसीय ‘युवा धर्म संसद-2022’ के प्रथम सत्र को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जब यूरोप में नेशन एवं स्टेट की अवधारणाएं स्थापित हो रही थीं, जब हम गुलाम थे, तब भी भारत की स्वीकृति एक राष्ट्र के रूप में दुनिया में थी।
तप है राममय हो जाना
राम की संपूर्णता पर विचार व्यक्त करते हुए शुक्ल ने कहा कि कृष्ण को अपनाना, कृष्णमय हो जाना सहज है, लेकिन राम को अपनाना, राममय हो जाना, तप है। राम स्वयं के प्रति कठोर हैं। राम स्नेही हैं।
अब राष्ट्र के लिए जीने का अवसर
प्रो. शुक्ल ने कहा कि राम को समझना है तो यह भी समझना होगा कि इस मेरी मातृ भूमि के प्रति कुदृष्टि रखा जाएगा तो सेतु बंध बनेगा और रावण मारा जाएगा। उन्होंने युवाओं से कहा कि इस राष्ट्र के लिए मरने के बहुत अवसर आए हैं, लेकिन अब यह अवसर राष्ट्र के लिए जीने का है।
भारतीय राष्ट्रवाद का मूल तत्व- संस्कृति
मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ स्तंभकार एवं उत्तर प्रदेश विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित ने कहा कि राष्ट्रवाद भारत का प्रमुख विचार है। ऋग्वेद का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्र की अवधारणा बहुत प्राचीन है। भारतीय राष्ट्रवाद का मूल तत्व संस्कृति है। दीक्षित ने कहा कि जो लोग अयोध्या के नाम से चिढ़ते थे, आज वे कह रहे हैं कि मैं भी अयोध्या जा रहा हूं।
राम ने किसी के प्रति नहीं किया भेदभाव
सत्र की अध्यक्षता करते हुए श्री राम तीर्थ क्षेत्र न्यास के महासचिव एवं विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष चंपत राय ने कहा कि राम में त्याग, संयम है। उन्होंने जंगल में आत्मानुशासन का पालन किया। उन्होंने किसी के प्रति भेदभाव नहीं किया। उन्होंने किसी पर दोषारोपण नहीं किया। राय ने कहा कि राम के व्यवहार से अपने लिए करणीय खोजना होगा।
राम को समझने के लिए काफी नहीं अयोध्या
इसके पूर्व अपने बीज वक्तव्य में वरिष्ठ साहित्यकार यतींद्र मिश्र ने कहा कि भगवान राम को समझने के लिए अयोध्या काफी नहीं है, उनको समझने के लिए कबीर के पास जाना होगा, रैदास के पास जाना होगा, रामचरितमानस के पास जाना होगा।
ख्याति साहित्यकार डॉ विद्यानिवास मिश्र को स्मरण करते हुए उन्होंने युवाओं को सूत्र दिया कि सूनो सबकी, लेकिन करो अपने मन की। उन्होंने सद्पुरुषों के पास जाने की सलाह दी। कार्यक्रम का संचालन असिस्टेंट प्रोफेसर प्रत्याशा शुक्ला ने की। वहीं, अतिथियों का आभार ज्ञापन सेवाज्ञ संस्थानम् के संरक्षक आचार्य मिथिलेशनंदिनी शरण ने की।
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