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VCW hindi workshop: वी सी डब्लू में सप्त दिवसीय हिंदी कार्यशाला

VCW hindi workshop: मुख्य वक्ता मधु कांकरिया ने साहित्य और समाज से सम्बंधित बुनियादी सवालों पर किया फोकस

रिपोर्टः डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 15 मार्च:
VCW hindi workshop: वसंत महिला महाविद्यालय, राजघाट फ़ोर्ट , वाराणसी के हिंदी विभाग द्वारा ‘पाठ-संवाद और महिला रचनाकार’ विषयक सात दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला की मुख्य वक्ता मधु कांकरिया ने साहित्य और समाज से संबंधित बुनियादी सवालों पर बात किया। उन्होंने ‘मैं क्यों लिखती हूं’ के जवाब में बताया “मैं इसलिए लिखती हूं कि मैं बिना लिखे रह ही नहीं सकती हूं। मेरे भीतर की जो दुनिया है उसमें एक बहुत विराट भयानक जंगल है जिसमें क्रोध, काम, राग, द्वेष के इतने दरिंदे हैं जो कई बार जीना दुश्वार कर देते हैं ,जिसमें अतीत की बेचैन स्मृतियां हैं, जिसमें ढेर सारे सवाल हैं। जिनके जवाब मुझे आज तक नहीं मिले… नहीं मिले।

उन्होंने कहा- “जब हम लिखना प्रारंभ करते हैं तो हम लिखने से ज्यादा देखना प्रारंभ करते हैं। हम अपनी आसपास की दुनिया के पहले द्रष्टा बनते हैं फिर स्रष्टा बनते हैं। कबीर ने भी अखियन देखन की बात कही है। उन्होंने महात्मा गांधी के माध्यम से बताया कि पहले उन्होंने भारत दर्शन किया फिर देश को समझे। उसके बाद उन्होंने आजादी का नेतृत्व किया। प्रेमचंद के उदाहरण के माध्यम से बताया कि उन्होंने भी किसानों के जीवन को देखा, अनुभव किया तब वह रंगभूमि और गबन जैसे उपन्यासों की रचना कर पाए।

Madhu,VCW hindi workshop

उन्होंने अपने पहला उपन्यास ‘खुले गगन के लाल सितारे’ के विषय में बताया कि कैसे उसकी रचना की। उन्होंने स्वयं के अनुभव के आधार पर इस उपन्यास की रचना की और पृष्ठभूमि रची। उन्होंने बताया कि जो अनुभव हमारे ह्रदय को छू जाए उसपर रचना अवश्य करनी चाहिए। उन्होंने अपने उपन्यास ‘हम यहां थे’ जो आदिवासियों के जीवन पर आधारित है। उस पर गंभीर वक्तव्य देते हुए आदिवासियों के जीवन के रोजमर्रा की घटनाओं व आदिवासी परेशानियों पर बात करते हुए कहा कि प्रकृति के ज्यादा करीब हैं।

उन्होंने आदिवासियों के जीवन में विकास की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि आदिवासी दोहरे अन्याय के शिकार हो रहे हैैं जिस पर हम सब को ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने बताया “लेखक का काम है अंधेरे के बाहर जो रोशनी की किरण है उसको दिखाना। हम लेखक इसी उम्मीद में लिखते हैं कि लोगों की न्याय पाने की उम्मीद बची रहे।”

VCW hindi workshop: सविता सिंह जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा- “धर्म ने सबसे ज्यादा औरतों को दास बनाया है, सबसे ज्यादा उन्हें डराया है, उनको भीरू बनाया है। मनुष्य धर्म के नाम पर किसी से कुछ भी कर या करा सकता है। एक लेखक को हिम्मत भी चाहिए जिसको कहते हैं- नैतिक बल। आपकी नैतिकता वही नहीं होनी चाहिए जो समाज की नैतिकता है। उन्होंने कहा कि लेखक में इतनी चेतना अवश्य होनी चाहिए कि वह समाज के सत्य और असत्य न्याय और अन्याय को देख सके परख सके।

एक लेखक का यथार्थ अलग होता है इसलिए दो प्रकार की रचना होती है। एक जिसको मौलिक लेखन कहते हैं जिसमें कथ्य की रचना की जाती है। एक अलग नैतिक स्तर चाहिए। दूसरा रूप द्वितीयक लेखन है। जो मौलिक रचना की आलोचना होती है। स्त्री लेखन का मतलब है अपने अस्तित्व को दोबारा देखना। इस संसार में स्त्री प्रकृति के पक्ष में रहकर के बहुत कुछ अच्छा कर सकती है और कर रही है। उन्होंने अपनी स्त्री केंद्रित कविता ‘मैं किसकी औरत हूं’ का पाठ करके वक्तव्य को विराम दिया। संवाद-सत्र के दौरान वक्ताओं ने प्रतिभागियों के प्रश्नों का संतोषप्रद उत्तर भी दिया।

VCW hindi workshop: अतिथियों का स्वागत प्राचार्या प्रो. अलका सिंह ने किया तथा कुशल संचालन किया प्रो. मीनू अवस्थी ने। अंत में संयोजक प्रो. शशिकला त्रिपाठी ने कहा कि मधु काँकरिया की रचनाएँ उन विषयों को केन्द्र में लाती हैं जो ज्वलंत मुद्दे तो हैं लेकिन हाशिए पर डाल दिए गये हैं। उन्होंने धार्मिक रूढ़ियों, धर्मांतरण,आदिवासियों के जीवन संघर्ष और नक्सलवाद जैसे विषयों पर लेखन कर यह साबित किया है कि महिला रचनाकारों के क्षितिज का अति विस्तार हुआ है।

विद्यार्थियों में समान भाव से सृजनात्मकता का बीज डालना आवश्यक है, कार्यशाला का यही उद्देश्य था। स्त्रियों को शैशवावस्था में ही बच्चे को यह ज्ञान देना होगा कि स्त्री व पुरुष दोनों बराबर हैं । दोनों की शिक्षा-दीक्षा भी एकसमान हो। रचनाओं में भी इस सोच का रेखांकन जरूरी है क्योंकि साहित्य संवेदना को जगाता है । उन्होंने कार्यक्रम से जुडे सभी सहयोगियों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया।

इस आभासीय कार्यक्रम में जापान के हिंदी विद्वान पद्मश्री प्रो. तोमियो मिजो़कामी जी व कई विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों के शिक्षक, विद्यार्थी एवं साहित्य प्रेमियों की उल्लेखनीय उपस्थिति रही .

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