Seminar on One Nation One Election

Seminar on One Nation One Election: वाराणसी में एक राष्ट्र एक चुनाव पर सेमिनार संपन्न

  • संगोष्ठी मे वक्ताओं ने एक राष्ट्र एक चुनाव की व्यवस्था को लागू करने के पूर्व राष्ट्रीय बहस और प्रादेशिक दलों के अस्तित्व संकट पर भी गौर करने का सुझाव दिया
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रिपोर्टः डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 22 मार्चः
Seminar on One Nation One Election: वसंत कन्या महाविद्यालय VKM के राजनीतिक विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार सफलता पूर्वक संपन्न हो गया। ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्बोधन सत्र की अध्यक्षता नई दिल्ली के प्रोफेसर आनंद प्रधान ने की।

यह सत्र ‘एक राष्ट्र एक चुनाव और क्षेत्रीय दल’ पर अधारित रहा। जिसके मुख्य वक्ता प्रोफेसर सुधीर चतुर्वेदी केंद्रीय विश्वविद्यालय हेमवंती नंदन बहुगुणा, विश्वविद्यालय ने कहा कि लगातार चुनाव भारत में आर्थिक खर्चों को और बढ़ा सकता है, और अगर हम एक राष्ट्र एक चुनाव वाली व्यवस्था को अपनाएं तो इस प्रकार के अतिरिक्त खर्चों को कम कर सकते हैं।

दूसरे वक्ता डॉ. अजय बरनवाल, विधि संकाय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने भारतीय संविधान के विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से एक राष्ट्र एक चुनाव के विषय को व्याख्यित किया। जिसमें इन्होंने इसके फायदे और इसकी चुनौतियों को परिभाषित किया।

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सेमिनार मे डॉ. प्रीति सिंह वसंत महिला महाविद्यालय राजघाट ने अपने विस्तृत वक्तव्य में एक ओर कोविंद कमेटी की रिपोर्ट और दूसरी ओर क्षेत्रीय दलों के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि, एक राष्ट्रीय चुनाव वर्तमान में जरूरी तो है, किंतु दूसरी ओर क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर की समस्याओं और मुद्दों पर भी ध्यान देना जरूरी है। कहीं राष्ट्रीय मुद्दों में क्षेत्रीय मुद्दे खो न जायें।

दूसरे सत्र में प्रो. विश्वनाथ मिश्रा, आर्य महिला पी.जी. कॉलेज ने कहा कि हमें चुनावी खर्चों को कम करने के उद्देश्य पर सोचने के पहले राष्ट्र में हो रहे विभिन्न आयोजनों में हो रहे खर्चों पर भी विचार करना चाहिए। अंबेडकर की बात को उद्धृत करते हुए आपने कहा कि संविधान चाहे कितना भी अच्छा हो ,वह तभी अच्छा साबित हो सकता है जब इसके क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार लोग अच्छे हो।

प्रो.राजीव सिंह केंद्रीय विश्वविद्यालय हरियाणा ने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा, चुनाव के लिए सुनिश्चित किया गया खर्च, इतना ज्यादा है कि वह विभिन्न मुद्दों पर हो रहे राष्ट्रीय खर्चे के ढांचे को असंतुलित कर सकता है। डॉ. बिनीत सिन्हा, राजनीतिक विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय ने कहा कि इस नीति के विरोध में आयी सारी पार्टिया केवल आलोचना करने के लिए है। लोकतंत्र की नींव वोटरों के स्वस्थ वोट में है। अतः वोटर को जागरूक बनाना अत्यंत आवश्यक है।

डॉ. युवराज सूर्य ने कहा कि यदि आप समाज में परिवर्तन लाना चाहते हैं तो विरोधात्मक तथ्यों को नष्ट करना होगा। प्रजातंत्र तभी लागू हो पाएगा, जब छोटे दल अपने हित का त्याग करके सार्वजनिक संदर्भ में अपने मत को विकसित करें। जातिवाद की अवधारणा समाज में मत वैमनस्य उत्पन्न करता है।

डॉ. सनत कुमार शर्मा, एसो.प्रो. समाजशास्त्र अध्ययन केंद्र, केंद्रीय विश्वविद्यालय, साउथ बिहार ने अपने विभिन्न विचारों को रखते हुए कहा कि, एक राष्ट्र एक चुनाव की बात से कोई असहमत हो सकता है किंतु महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि हम अपने स्वस्थ वोट के प्रति कितने जागरुक है? हमें गौतम का न्याय सूत्र पढ़ना चाहिए जो एक अच्छे व्यक्तित्व निर्माण का साधन तत्व है। विखंडन की प्रक्रिया को छोड़कर सकारात्मकता के साथ हमें एक राष्ट्र के निर्माण पर विचार करना चाहिए।

अंतिम सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर अरुण कुमार सिंह रजिस्टार बी.एच.यू. के द्वारा किया गया। मुख्य वक्ता प्रो. संजय श्रीवास्तव, कुलपति महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय बिहार तथा अतिथि वक्ता प्रो.मनुका खन्ना, अध्यक्ष, राजनीतिक विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर अपने मतो को रखा। महाविद्यालय की प्रबंधक उमा भट्टाचार्या पूरे कार्यक्रम में उत्साहवर्द्धन के लिए उपस्थित रहीं।

महाविद्यालय की ओजस्वी प्राचार्या प्रोफेसर रचना श्रीवास्तव ने कार्यक्रम में उपस्थित समस्त अतिथियों का स्वागत एवं अभिनंदन किया। सेमिनार के समन्वयक डॉ आशीष कुमार सोनकर, कार्यक्रम आयोजक डॉ अनु सिंह, डॉ. प्रवीरा सिन्हा रहीं। संचालन डॉ. इन्दु उपाध्याय,डॉ सुप्रिया सिंह तथा रिपोर्टिंग डॉ. सपना भूषण, डॉ. कल्पना आनन्द, डॉ. शशिकेश कुमार गोंड़, डॉ.आरती कुमारी, डॉ. मंजू कुमारी, डॉ. सौमिली मंडल, डॉ. मालविका ने किया। इस पर महाविद्यालय के समस्त शिक्षक-शिक्षिकाएं एवं छात्राएं उपस्थित रहीं।

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