Photo Exhibition in BHU: बीएचयू में विभीषिका स्मृति दिवस पर फोटो प्रदर्शनी

Photo Exhibition in BHU: मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र में विभाजन की विभीषिका को दर्शाने वाली प्रदर्शनी 19 अगस्त तक चलेगी

रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह

वाराणसी, 15 अगस्त: Photo Exhibition in BHU: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के अवसर पर, मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र के भूतल लाबी में छायाचित्र प्रदर्शनी का उदघाटन प्रो. अवधेश प्रधान ने किया। प्रदर्शनी आम जनता हेतु 19 अगस्त तक खुली रहेगी। इस अवसर पर मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र एवं अन्तर-सांस्कृतिक अध्ययन केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में एक विचार गोष्ठी का भी आयोजन किया गया।

विचार गोष्ठी के आरंभ में वक्ताओं का स्वागत करते हुए अन्तर-सांस्कृतिक अध्ययन केन्द्र के समन्वयक प्रो. राजकुमार ने कहा कि एक सभ्यता जब एक राष्ट्र में रूपांतरित होती है तो जिन विडंबनाओं का शिकार होती है उन पर हमें विचार करना चाहिए। इतिहास विभाग की डॉ. सुतपा दास ने कहा कि, 1950 तक भारत में बंगाल विभाजन के बाद काफी संख्या में शरणार्थी आए जिनके पुनर्वास की भारतीयों के लिए बड़ी समस्या थी।

इन शरणार्थियो के लिए धन, मान और प्राण तीन मुख्य समस्या थी। इतिहास विभाग के ही डॉ. गगनप्रीत सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि पंजाबी साहित्य में विभिन्न साहित्यकारों के साहित्य में विभाजन की त्रासदियों का गहरा वर्णन मिलता है जो कि सरकारी अभिलेखागारों में उपलब्ध नहीं हैं। इन रचनाओं में महिलाओं के कष्टों का भी विस्तार से वर्णन है।

समाजशास्त्र विभाग के वरिष्ठ प्रो. अशोक कुमार कौल ने कहा कि मेरे लिए विभाजन दर्द और दुख का रूपक है। इस विभाजन ने कई तरह की बर्बादियाँ हमारे ऊपर आरोपित की हैं। पत्रकारिता एवं जनसंपर्क विभाग के प्रो. शिशिर बसु ने कहा कि भारत में विभाजन की त्रासदी पर कई फिल्में बनी है जैसे गर्म हवा, तमस इत्यादि।

ऋत्विक घटक की चार फिल्में बंगाल विभाजन की त्रासदी को दर्शाने की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं जिनमे ‘मेघे ढाका तारा’, ‘कोमल गंधार’, ‘सुवर्ण रेखा’ महत्वपूर्ण हैं। अँग्रेजी विभाग की प्रो. अर्चना कुमार ने कहा कि विभाजन की त्रासदी को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी समझने की कोशिश करनी चाहिए।

विभाजन की त्रासदी जो उस समय के लोगों ने झेला था वो उतना ही त्रासद था पर आज के समय में जो घटनाएँ घट रही हैं वो भी उतना ही त्रासद हैं। आई.आई.टी. (बी.एच.यू.) के प्रो. आर. के. मण्डल ने कहा कि विभाजन मानव इतिहास की सबसे कुरूप घटना हैं जिसने मानवीय सभ्यता को गहरा आघात पहुँचाया। हमें इतिहास के उन पात्रों को याद करना चाहिए जो हमे वर्तमान को समझने में मददगार हैं।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता हिन्दी विभाग के प्रो. अवधेश प्रधान ने कहा कि पंजाबी, बंगला और उर्दू साहित्य में विभाजन की त्रासदियों का बखूबी चित्रण हुआ हैं जो हमे याद दिलाता है कि हमें किसी भी तरह प्रयास करके ऐसी स्थितियों से बचना चाहिए। यूरोप के लोगों ने भारतीयों की अन्तरनिहित चेतना की एकता को समझ कर भी नासमझ बनकर भारतीय चेतना को शमित करने का प्रयास किया।

कार्यक्रम के अंत में सभा को धन्यवाद देते हुए मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र के समन्वयक प्रो. संजय कुमार ने कहा कि इतिहास में कई बार ऐसी घटनाएँ होती हैं जिन्हें हम चाह कर भी बदल नहीं सकते हैं. पर हम उनसे सबक लेकर रचनात्मक तरीके से इतिहास की नकारात्मक घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोक सकते हैं।

अगर हमें इतिहास की घटनाओं को अच्छी तरह से जानना-समझना है तो हमें इतिहासकारों और पुस्तकों का समग्र रूप से अध्ययन कर के अपनी विचारदृष्टि को परिपक्व बनाना होगा। कार्यक्रम संचालन मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र के डॉ. धर्मजंग ने किया।

कार्यक्रम में प्रो. कमलशील, प्रो. रंजनाशील,डॉ. उषा त्रिपाठी, डॉ. राजीव वर्मा, डॉ. गीतांजलि सिंह, डॉ. धर्मेंद्र यादव एवं बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित थे.

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