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Dhanteras 2022: धनतेरस पर काशी में मिलने वाली यह अठन्नी करती है चमत्कार, जानें इसकी पैराणिक मान्यता…

रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह

Dhanteras 2022: काशी में धनतेरस से अन्नकूट तक मां स्वर्ण अन्नपूर्णा के दर्शन लाभ प्राप्त करने वाले को धन और अन्न की कमी नहीं होने पाती

वाराणसी, 23 अक्टूबरः Dhanteras 2022: सनातन धर्म के अनुयायी कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान धन्वन्तरि का जन्मदिन ‘धनतेरस,’ ‘धन्य तेरस’ या ‘ध्यान तेरस’ के रूप में मनाते हैं। इस दिन के महत्व को बताती कई पौराणिक कथाएं और घटनाएं हैं। इसी तरह दुनिया की प्राचीनतम नगरी काशी या वाराणसी से भी जुड़ी एक मान्यता है, जिसके अनुसार काशी में धनतेरस से अन्नकूट तक मां स्वर्ण अन्नपूर्णा के दर्शन लाभ प्राप्त करने वाले को धन और अन्न की कमी नहीं होने पाती। इसी दौरान माता अन्नपूर्णा के मंदिर से प्रसाद स्वरुप सिक्का और धान का लावा मिलता है, जिसे तिजोरी और पूजा स्थल पर रखने से पूरे वर्ष धन और अन्न की कमी नहीं होने पाती।

अठन्नी पाने के लिए उमड़ पड़ेगी भीड़

स्टील की छोटी सी अठन्नी जो अब प्रचलन से बाहर है उसकी महत्ता समझनी हो तो वाराणसी के श्री काशी विश्वनाथ मंदिर की गली में स्थित मां अन्नपूर्णा के मंदिर में धनतेरस के दिन पहुंचिए। इस दिन देशभर से आए भक्त एक छोटे से पैकेट में मिलने वाले इस छोटी सी अठन्नी और धान के लावा का प्रसाद पाने के लिए घंटों लाइन लगाए खड़े रहते हैं।

इस वर्ष भी माँ अन्नपूर्णा के दर्शनों और प्रसाद पाने के लिए पांच से आठ नवंबर तक मंदिर के आगे भक्तों का हुजूम डटा रहेगा। इस लाइन में मां का खजाना पाने के लिए देश के कोने-कोने से आए भक्त नजर आएंगे। खासतौर इस लाइन में दक्षिण भारत के दर्शनार्थियों को बड़ी संख्या में देखा जा सकता है।

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चार दिनों तक लगेगी लम्बी लाइन

भीड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मंदिर से एक किलोमीटर दूर तक भक्तों की कतार दिखाई देती है। माँ अन्नपूर्णा के दर्शन के लिए यह हालात चार दिनों तक बने रहेंगे। धनतेरस की पूर्व संध्या पर आधी रात के बाद दर्शन के लिए खोला गया अन्नक्षेत्र इस समय भक्तों के हुजूम से पटा हुआ देखा जा सकता है। परंपरा के अनुसार धनतेरस से अन्नकूट तक ही भक्तों को स्वर्ण अन्नपूर्णा के दर्शन प्राप्त हो सकेंगे।

यह देश में मां अन्नपूर्णा का यह एकलौता मंदिर जहां धनतेरस से अन्नकूट तक मां का खजाना भक्तों को प्रसाद स्वरुप दिया जाता है। मंदिर से प्रसाद के रूप में मिली अठन्नी का सिक्का और धान का लावा को लोग अपने घरों और कम की जगह पर तिजोरी और पूजा स्थल पर रखते हैं। माना जाता है कि माँ अन्नपूर्णा के प्रसाद से भक्तों के घर पूरे वर्ष धन और अन्न की कमी नहीं होती है।

माँ अन्नपूर्णा ने किया था अकाल का कष्ट दूर

माँ अन्नपूर्णा के दरबार से प्रसाद पाने और उससे धन और धान्य की कमी न होने के पीछे भी एक कथा है। माँ अन्नपूर्णा मंदिर के महंत रामेश्वर पुरी बताते हैं कि एक बार काशी में अकाल पड़ा था और लोग भूखों मरने लगे थे। काशीवासियों की यह दशा देखकर भगवान महादेव भी उदिग्न हो उठे।

उन्होंने इसी स्थान पर माँ अन्नपूर्णा से काशीवासियों के कल्याण के लिए भिक्षा मांगी थी। मां ने भक्तों के कल्याण के लिए भगवान शंकर को भिक्षा के रूप में अन्न दिया और साथ में वरदान भी दिया कि काशी में रहने वाला कोई भी भक्त कभी रात्रि में भूखा नहीं सोएगा।

यह है पौराणिक मान्यता

स्कन्दपुराण के काशी-खंडोक्त में भी इस बात का वर्णन है कि भगवान विश्वेश्वर यानि भगवान शंकर गृहस्थ हैं और माँ भवानी उनकी गृहस्थी चलाती हैं। इसलिए काशीवासियों के कुशल-मंगल का दायित्व भी इन्हीं पर है। ‘ब्रह्मवैवर्त्तपुराण’ के काशी-रहस्य में बताया गया है कि माँ भवानी ही अन्नपूर्णा हैं। आम दिनों में माँ अन्नपूर्णा माता की आठ परिक्रमा होती है। साथ ही हर महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन माँ अन्नपूर्णा के लिए व्रत रह कर उनकी उपासना की जाती है।

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