Ghunghat: घूँघट में अरमानों को छुपाए, बड़ों के आगे सर झुकाए..
!! घूँघट !!( Ghunghat)
घूँघट (Ghunghat) में अरमानों को छुपाए, बड़ों के आगे सर झुकाए
तुम हर दिन कल्पना से परे ना जाने कितना सहती हों
पर मजाल है जो उफ़ भी करतीं हों
भौर तुम्हारी सबसे पहले हों जाती
कोई तकलीफ़ भी हो तो तुम कहां बताती
सबकी पसंद के पकवान बनाती हो
और फिर चुटकी भर नमक भी ज्यादा हो जाए
तो शब्दों का बाण ही नहीं हाथों का ज़ोर भी सहती हों
पर मजाल है जो उफ़ भी करतीं हों
घूँघट (Ghunghat) सरक जाए कभी तो तुम्हे मर्यादा का पाठ पढ़ा देते हैं
अपनी ख्वाहिशों के लिए आवाज़ उठाती हों तो बद्दिमाग कह देते हैं
बिना उम्मीद भी तुम हर फ़र्ज़ निभातीं हों
पर मजाल है जो उफ़ भी करतीं हों
अपने आप को हर दिन खो रही हो
तुम क्यों लोगों के ताने सुन रही हों
तुम्हारी भावनाओं को कहते अनमोल नहीं
तेरे त्याग का इन्हें कोई मोल नहीं
ये सब देखकर भी तुम ख़ामोश रह जाती हों
पर मजाल है जो उफ़ भी करतीं हों
हों सके तो एक बार अपने आप को आईने में देख लेना
जो पहचान जाओ खुद को तो आंसुओं को पोंछ देना
घुट रहा हो जब अस्तित्व तुम्हारा
घूँघट (Ghunghat) को सरका तुम अपने वजूद को बचाना
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