Vishva shanti Manthan in Kashi: काशी में थियोसाफिकल सोसाइटी के राष्ट्रीय सम्मलेन के दूसरे दिन में विश्व शान्ति पर मंथन
Vishva shanti Manthan in Kashi: दार्शनिक प्रोफेसर पी. कृष्णा, बी एच यू के कुलपति प्रोफेसर सुधीर कुमार जैन के हुए प्रमुख व्याख्यान
रिपोर्टः डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 30 अक्टूबर: Vishva shanti Manthan in Kashi: काशी में थियोसाफिकल सोसाइटी के राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन विद्वान वक्ताओ के सारगर्भित व्याख्यान हुए. इस अवसर पर अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातप्राप्त दार्शनिक प्रोफेसर पी कृष्णा और बी एच यू के कुलपति प्रोफेसर सुधीर कुमार जैन ने अपने व्याख्यान से सम्मेलन को उच्च गरिमा प्रदान की .
विश्व बन्धुत्व आज के समय की आवश्यकता विषय पर थियोसाफिकल सोसायटी कमच्छा परिसर में आयोजित त्रिदिवसीय सम्मेलन के दूसरे दिन की शुरुआत प्रो0 पी. कृष्णा के सम्भाषण से हुआ. उन्होंने डा0 राधा बर्नियर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर ओजपूर्ण ढंग से अपना विचार प्रस्तुत किया. द्वितीय सत्र में युवा भारतीय थियोसाफिस्ट के द्वारा विचारों की प्रस्तुति की गयी. कृतिका गोयल ने बन्धुत्व की भावना को कैसे यथार्थ में उतारा जाये और पुणे लाज की मोनिका वकारे ने धर्म के बिना बन्धुत्व की भावना का हृास हो जाता है विषय पर विचार प्रस्तुत किया.
युवा थियोसाफिस्टों की अगली कड़ी में बंगलुरू, सिटी लाज के प्रदीप एम.एस. ने बन्धुत्व के लिए किसी भी प्रकार के विभेदीकरण को समाप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया। इसी कड़ी में आनन्द लाज, प्रयागराज के दर्शन झा ने सबमें स्व परिलक्षित होता है और सब स्व में परिलक्षित होते है विषय पर एक अलग दृष्टिकोण दिया.

तृतीय सत्र में विशेष व्याख्यान की कड़ी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 सुधीर कुमार जैन ने विश्व बन्धुत्व के निर्माण और विकास में विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर बताया कि बन्धुत्व की भावना का विकास बच्चों में स्कूल, कालेज के अंदर किया जाना आवश्यक है।
कुलपति ने 4 बातों पर मुख्य रूप से बल दिया – मूल्य , प्रवृत्ति, जीवन जीने का कौशल तथा प्रेरणा. उन्होने इस बात पर बल दिया कि किसी भी कार्य के लिए व्यक्ति का अच्छा होना अत्यन्त आवश्यक है। यदि वह व्यक्ति के रूप में अच्छा है तो वह काम ना आते हुए भी उसे सीख सकता है और एक अच्छा कर्मचारी सिद्ध हो सकता है। एक नकारात्मक व्यक्ति को सकारात्मक बनाना कठिन है लेकिन एक सकारात्मक व्यक्ति को काम सिखाना आसान है। मुख्य वक्ता ने कहा कि भावी पीढ़ी डार्विन के नियमों के अनुसार अपनी पूर्व पीढ़ी से बेहतर होती है अतः शिक्षकों को अपने छात्र/छात्राओं पर विश्वास करना चाहिए, उन्हें जिम्मेदारी सौपनी चाहिए क्योंकि तभी वे अपना सर्वोत्तम प्रस्तुत कर पाएंगे.
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द्वितीय दिन के चतुर्थ सत्र में अंतर्राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दीपा पाढी ने थियोसाफिकल आर्डर आफ सर्विस के वर्षपर्यन्त कार्यों की समीक्षा की। इसके पश्चात् पाँचवे सत्र में नर्सिंह ठाकरिया ने दैनिक जीवन में विश्व बन्धुत्व को कैसे प्रयोग में लाया जा सकता है, इस पर अपने विचार प्रस्तुत किया .
वसन्त कन्या महाविद्यालय की लोकप्रिय प्राचार्या प्रो0 रचना श्रीवास्तव ने विश्व बन्धुत्व को वैश्विक शान्ति के लिए अनिवार्य बताते हुए उसके व्यक्तिनिष्ठ और समाजनिष्ठ पहलुओं की चर्चा की. रूस और यूक्रेन के संघर्ष से लेकर पारस्परिक द्वेष और वैमनस्य को कम करने में विश्व बन्धुत्व एक मुख्य भूमिका निभा सकता है, इस पर उन्होंने जोर दिया. सुवरलीना मोहन्ती ने अज्ञानता ही अलगाव का कारण है, इस पर अपने विचार दिए।
इस अवसर पर छात्राओं ने आकर्षक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया. थियोसाफिकल सोसायटी परिसर स्थित एनी बेसेण्ट स्कूल ने मै काशी हूँ विषय पर एक नृत्य नाटिका प्रस्तुत की. वही बेसेण्ट थियोसाफिकल स्कूल ने वाद्यवृन्द प्रस्तुत किया। वसन्त कन्या इण्टर कालेज की छात्राओं ने नृत्य तथा वसन्त कन्या महाविद्यालय की छात्राओं ने राधा कृष्ण लीला एवं सुगम संगीत की आकर्षक प्रस्तुति की.
सांस्कृतिक कार्यक्रम का आरंभ वसन्त कन्या महाविद्यालय की पूर्व छात्रा श्रीमती साक्षी गुप्ता की गणपति वन्दना पर आधारित भरतनाट्यम नृत्य से हुआ और समापन प्रयास लाज, गाजियाबाद द्वारा दशावतार की प्रस्तुति से हुआ.