Theosophical society organized akhil bhartiya sammelan

Theosophical society organized akhil bhartiya sammelan: थियोसाफिकल सोसाइटी का मूल विश्व बंधुत्वः डॉ दीपा पाढ़ी

  • रूस-यूक्रेन महायुद्ध पर वक्ताओं ने व्यक्त की चिंता….

Theosophical society organized akhil bhartiya sammelan: सोसाइटी का 131वां राष्ट्रीय सम्मेलन शुरू हुआ काशी में

रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह

वाराणसी, 28 अक्टूबर: Theosophical society organized akhil bhartiya sammelan: विश्व बंधुत्व आज की आवश्यकता विषय पर थियोसाफिकल सोसाइटी द्वारा आयोजित तीन दिवसीय अखिल भारतीय सम्मेलन के पहले दिन वक्ताओं ने, रूस उक्रेन महायुद्ध पर घोर चिंता प्रकट किया। वक्ताओं की स्पष्ट राय रही कि, विश्व बंधुत्व के बिना विश्व शांति संभव नहीं। सम्मेलन की मुख्य वक्ता डॉ दीपा पाढ़ी ने इस अवसर पर अपना उदबोधन देते हुए कहा कि, अन्तर्राष्ट्रीय थियोसाफिकल सोसाइटी का मूल मंत्र ही विश्व बंधुत्व है।

131 वें राष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ डॉ.राधा बर्नियर एंफीथियेटर परिसर में हुआ। उद्घाटन सत्र का प्रारंभ सर्वधर्म प्रार्थना तथा थियोसॉफिकल सोसायटी की वैश्विक प्रार्थना से हुई। प्रदीप एच. गोहिल, अध्यक्ष, भारतीय शाखा ने प्रतिनिधियों का स्वागत किया। विभिन्न प्रांतों से आए हुए प्रान्तिक प्रतिनिधियों ने भी सम्मेलन की सफलता के लिए शुभकामनाएं दीं।

गोहिल ने विभिन्न शाखाओं के संदेशों का वाचन करते हुए भारतीय शाखा का वार्षिक प्रतिवेदन भी प्रस्तुत किया। इसके बाद वी.नारायणन, अंतर्राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष, थियोसाफिकल सोसायटी ने भारतीय शाखा का कोष प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।

इस अवसर पर मुख्य वक्ता डॉ. दीपा पाढ़ी, अंतर्राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, थियोसॉफिकल सोसायटी ने कहा कि थियोसाफिकल सोसाइटी का मूल ही विश्व भ्रातृत्व है। ऋग्वेद से लेकर महा उपनिषद् और भगवद्गीता को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि, हिंदू धर्म में वसुधैव कुटुंबकम् के उद्घोष के साथ अत्यंत गहराई से विश्व के समस्त मानव में समानता एवं एकता की भावना ओतप्रोत है।

आज का विज्ञान भी पूरी पृथ्वी को (ग्लोबल विलेज) वैश्विक ग्राम मानता है। आज इस वैश्विक ग्राम में आतंकवाद, लैंगिक एवं वर्ण वैषम्य तथा जातिवाद फैला हुआ है। रूस एवं यूक्रेन का युद्ध कठोर सत्य है। ऐसी स्थिति में मानव मात्र में बंधुत्व की भावना को विस्तारित करके ही घृणा एवं हिंसा को न्यूनतम स्तर पर लाया जा सकता है।

प्रथम दिन विशिष्ट वक्ताओं में केशव शास्त्री ने विश्व बंधुत्व के सार तत्त्वों पर विस्तृत परिचर्चा करते हुए आदि शंकराचार्य के जीवन दृष्टांत से ईश्वर को संपूर्ण संसार का संचालन कर्ता और सर्वत्र व्याप्त बताया। शिव कुमार पांडे ने स्वार्थ को सभी संघर्षों का मूल मानते हुए आत्म मूल्यांकन करने पर बल दिया। प्रो.अजय राय ने प्रतिक्रिया करने की अपेक्षा सहृदयता के लिए कार्य विषय पर बोलते हुए प्रतिक्रिया के निवारण हेतु चार उपायों- स्वयं सभी विषयों पर सतर्कता, प्रतिक्रिया से बचना, संयम बरतना और अपने व्यवहार को सकारात्मक बनाने की चर्चा की।

द्वितीय सत्र में सोसायटी के पूर्व महासचिव एस. सुंदरम ने रोहित मेहता के जीवन प्रसंगों पर प्रकाश डालते हुए उन्हें मान्य थियोसॉफिस्ट,  अत्यंत ओजस्वी वक्ता और लेखक बताया। यू. एस. पाण्डेय ने विश्व बंधुत्व के विविध आयामों की चर्चा करते हुए धर्म का मानव जीवन पर प्रभाव, इसके अभ्यास विधि, तथा अभ्यास में आने वाले अवरोधों पर प्रकाश डाला। अंतिम वक्ता प्रोफेसर पी. कृष्णा ने “विश्व बंधुत्व: सत्य या असत्य” विषय पर विस्तार से प्रकाश डाला। सत्र की अध्यक्षता प्रो. रचना श्रीवास्तव, प्राचार्य, वसंत कन्या महाविद्यालय कमच्छा ने की।

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