Kamla Pandey

Scholar of kashi advice to researcher of cambridge university: कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के बहुचर्चित शोधार्थी को काशी की विदुषी ने दी नसीहत

Scholar of kashi advice to researcher of cambridge university: अपने शोधकार्य से बहुचर्चित अध्येता ऋषिराज पोपट को संस्कृत मातृ मण्डलम की अध्यक्ष, गंगा रत्न प्रोफेसर कमला पाण्डेय की सार्थक सलाह

रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह

वाराणसी, 27 दिसंबर: Scholar of kashi advice to researcher of cambridge university: काशी की अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्कृत विद्वान, गंगा रत्न प्रोफेसर कमला पाण्डेय ने कैम्ब्रिज विश्व विद्यालय के बहुचर्चित शोधार्थी ऋषिराज पोपट को नसीहत दी है। प्रोफेसर पाण्डेय ने एक भेंट में कहा कि, उक्त छात्र ने कम्प्यूटर यंत्र में पाणिनीय सूत्रों के प्रयोग में सफलता का दावा जिस अंदाज में किया, उस पर उनको पुनः विचार करने की जरूरत है।

देश की आवाज के साथ बातचीत करते हुए अपनी कालजई रचना, रक्षत गंगाम महाकाव्य की रचयिता प्रोफेसर कमला पाण्डेय ने कहा कि, पोपट महोदय के कम्प्यूटर की कोडिंग भले ही दायें बायें प्रयोग से हो जाय, वे विप्रतिषेधे सूत्रं…का अर्थ पद का उत्तर अंश लगा दें… उससे वे आचार्यों की व्याख्या को गलत नहीं ठहरा सकते। उनकी व्याख्या कम्प्यूटर सापेक्ष किं वा काल सापेक्ष नहीं है।

गंगा रत्न प्रोफेसर पाण्डेय ने आगे कहा कि, पल्लवग्राही पाण्डित्य से पाणिनि के परवर्ती आचार्यों को गलत ठहराना, शास्त्रीय अपराध की श्रेणी में आता है। यदि कोई संगीतज्ञ श्लोक को रागबद्ध करने में स्वरों के उतार चढाव को बदलता है तो, उससे छंदःशास्त्र के नियम गलत नहीं ठहराये जा सकते। अतः किसी को भी कम्प्यूटर की प्रोसेसिंग करने में, अगाध ज्ञान के भण्डार प्राचीन ग्रन्थौं के अस्तित्व को चुनौती नहीं देना चाहिये।

संस्कृत भाषा के उत्थान एवं गंगा रक्षा हेतु सम्पूर्ण जीवन को न्योछावर करने वाली गंगा रत्न प्रोफेसर कमला पाण्डेय ने आगे कहा कि, वर्तमान समय में कम्प्यूटरीय दो शब्द, मेटारूल और डिकोडिंग की अद्भुत क्षमता पाणिनि के पास तब से थी, जब उन्होंने महेश्वर के डमरू से चौदह सूत्र डिकोड किये। सम्पूर्ण पाणिनीय शास्त्र को कोड डिकोड के चैनल में शिक्षा जगत के सामने रखा। अतिउत्साही कैंब्रिज के छात्र ऋषिराज के ज्ञान में बृद्धि करते हुये प्रोफेसर कमला ने आगे कहा कि, पाणिनि का सबसे मार्वेलस डिकोडिंग रूल ‘पूर्वत्रासिद्धम्’ है।

प्रोफेसर पाण्डेय ने पोपट महोदय को नसीहत देते हुए कहा कि, वे केवल अपनी मति के अनुरूप कम्प्यूटरीय आउटपुट इनपुट में संतोष करें। वे अपनी हाइपोथिसिस को व्याकरण के मर्मज्ञ विद्वानों के द्वारा युक्ति पूर्ण पर्यवेक्षण हेतु प्रस्तुत करें। व्याकरण शास्त्र के परवर्ती विकास पर अपनी कपोल कल्पना थोपना सर्वथा अनुचित है।

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