International Seminar at Vasant Women College

International Seminar at Vasant Women College: वसंत कन्या महाविद्यालय में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी

International Seminar at Vasant Women College: अंग्रेजी विभाग द्वारा आयोजित संगोष्ठी में कई देशों के विद्वानों की हुई भागीदारी

रिपोर्टः डॉ राम शंकर सिंह

वाराणसी, 23 जनवरीः International Seminar at Vasant Women College: वसंत कन्या महाविद्यालय के अंग्रेजी विभाग द्वारा आई.सी.एस.एस.आर द्वारा वित्तपोषित द्वि-दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित (International Seminar at Vasant Women College) की गई। जिसका विषय था ‘मिथक, इतिहास और संस्कृति’। इस द्वि-दिवसीय संगोष्ठी में भारत और पश्चिमी देशों में मिथक, संस्कृति और इतिहास के विकास से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई।

संगोष्ठी में भारत के साथ-साथ भूटान, ताशकंद, बांग्लादेश, न्यूजीलैंड आदि देशों के विषय विशेषज्ञों ने भी हिस्सा लिया। उद्घाटन भाषण ऑनलाइन प्रो. गंगाधर पांडा, कुलपति, नेताजी सुभाष विश्वविद्यालय जमशेदपुर झारखंड द्वारा दिया गया। प्रोफेसर सुखबीर सिंह (एमेरिट्स प्रोफेसर उस्मानिया विश्वविद्यालय) और डॉ. निशा सिंह (प्रमुख, अंग्रेजी विभाग, एम.जी.के.वी.पी) ने ऑनलाइन के माध्यम से विशेष व्याख्यान दिया।

उद्घाटन समारोह में मुख्य भाषण वर्जीनिया कॉमनवेल्थ यूनिवर्सिटी, यू एस ए के संबद्ध प्रोफेसर रतन भट्टाचार्जी द्वारा दिया गया। उन्होंने अपने विषय ‘शास्त्रीय साहित्य के ऐतिहासिक कारणों और मनोवैज्ञानिक मिथकों को फिर से पढ़ना’ पर बात करते हुए कहा कि जब भारत अयोध्या में भगवान राम से जुड़ी पौराणिक कथाओं की महाकाव्य लिपि को फिर से लिख रहा है, तो पवित्र शहर वाराणसी में वसंत कन्या महाविद्यालय मिथक, इतिहास और संस्कृति पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन कर रहा है।

इस विचारोत्तेजक विषय पर मुख्य भाषण देना एक विशेषाधिकार और बड़ा सम्मान है। मिथक मानव मानस का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था जिसने उसे दुनिया में व्यवस्था और अर्थ खोजने की अनुमति दी। इसलिए मिथकों का उपयोग न केवल सांस्कृतिक मूल्यों को सिखाने के लिए किया गया, बल्कि समाज में एक संरचना बनाने के लिए भी किया गया।

जेम्स फ्रेजर ने अपनी पुस्तकर ‘द गोल्डन बॉफ’ में इस दृष्टिकोण की क्लासिक अभिव्यक्ति प्रदान की है कि मिथक का विषय भौतिक प्रक्रिया है। मिथकों का उपयोग धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यताओं का पता लगाने के लिए किया जा सकता है। स्पष्ट रूप से इस संगोष्ठी में मिथक के पुनर्पाठ पर विचार-विमर्श और इसके महत्व पर प्रकाश डाला जाएगा।

विभिन्न संस्कृतियों में मिथक और तीन प्रकार के मिथक जो हमारे इतिहास और संस्कृति पर हावी हैं। अर्थात् ऐतिहासिक मिथक, एटिऑलॉजिकल मिथक और मनोवैज्ञानिक मिथक। अकेले वाल्मिकी रामायण पौराणिक इतिहास और ऐतिहासिक मिथक को दिखाने के लिए पर्याप्त है। भगवान राम, जिन्हें कई हिंदू एक ऐतिहासिक व्यक्ति पर आधारित मानते हैं, शायद हिंदू पौराणिक कथाओं के सबसे गुणी नायक हैं और वह, अपनी पत्नी सीता के साथ, एक तस्वीर हैं।

पवित्रता और वैवाहिक भक्ति की इतिहास मुख्यतः साक्ष्यों और अभिलेखों पर आधारित होता है, जबकि पौराणिक कथाएँ पूरी तरह से कहानियों और किंवदंतियों पर आधारित होती हैं। लेकिन जब विद्वान ईमानदारी से प्रमाण देते हैं तो पौराणिक कथाएं बदल जाती हैं।

मिथक मानव मानस का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था जिसने उसे दुनिया में व्यवस्था और अर्थ खोजने की अनुमति दी। इसलिए मिथकों का उपयोग न केवल सांस्कृतिक मूल्यों को सिखाने के लिए किया गया, बल्कि समाज में एक संरचना बनाने के लिए भी किया गया। दुनिया का सबसे पुराना मिथक एक मनोवैज्ञानिक मिथक है जो जीवन के अर्थ और मृत्यु की अनिवार्यता को खोजने के लिए व्यक्ति की यात्रा को समझाता है।

प्रोफेसर अनीता सिंह, अध्यक्ष अंग्रेजी विभाग, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, ने सत्र की अध्यक्षता की। प्रोफेसर प्रकाश जोशी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज ने अपने वक्तव्य में कहा कि लोक साहित्य, लोक संस्कृति, लोक कथाओं में मिथक अपने विस्तृत रूप में दिखाई पड़ता है, इस संगोष्ठी द्वारा हम साहित्य, इतिहास और संस्कृति से जुड़े मिथको को विस्तृत रूप में जान पाएंगे।

डॉ.एस.चित्रा, सहायक प्रोफेसर, कला और मानविकी विभाग, रॉयल यूनिवर्सिटी ऑफ भूटान ने साहित्य, चित्र अध्ययन, लोक कथायें विषय पर अपने विचार प्रकट किये। कुल छः आनलाइन तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। डॉ. जय सिंह, (एसोसिएट प्रोफेसर, अंग्रेजी विभाग, ई.एफ.एल.यू, हैदराबाद) ने अपने विषय-‘पश्चिम का पूरब से मिलनः पश्चिमी कल्पना में भारत’ पर विचार रखें। प्रो. एल्हम हुसैन, (ढाका सिटी कॉलेज, नेशनल यूनिवर्सिटी, बांग्लादेश) स्कॉट ग्रैनविल, सह-संस्थापक और प्रबंध निदेशक, इंग्लिश टाइम न्यूजीलैंड ने आॅनलाइन माध्यम से इस संगोष्ठी में विशिष्ट व्याख्यान दिया।

प्राचार्य प्रोफेसर रचना श्रीवास्तव ने स्वागत वक्तव्य में कहा कि राम ही मिथक, इतिहास और संस्कृति है । यह बहुत ही शुभ दिन है जब अयोध्या में श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा की गयी और आज ही इस संगोष्ठी का आयोजन किया गया। उन्होंने सभी अतिथियों का स्वागत किया। अतिथियों को उत्तरीय और स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया। महाविद्यालय की प्रबंधिका उमा भट्टाचार्या ने आयोजन की सफलता के लिए आशीर्वचन दिया। संगोष्ठी की विषय प्रस्तुति डॉक्टर पूर्णिमा सिंह ने दी।

महाविद्यालय की स्थापना के 70 वर्ष में संगोष्ठी की प्रासंगिकता नवीन शिक्षा नीति के साथ समेकित रूप से देखने योग्य है। संगोष्ठी की परिकल्पना महाविद्यालय की प्राचार्य एवं संगोष्ठी की संरक्षिका प्रोफेसर रचना श्रीवास्तव ने की। उद्घाटन समारोह का शुभारंभ कुलगीत एवं मां एनीबेसेण्ट के चित्र पर पुष्पांजलि से हुआ।

अंग्रेजी विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर नीहारिका लाल, डॉक्टर सुप्रिया सिंह, डॉक्टर शांता चटर्जी, प्रो.कल्पलता डिमरी, प्रो संगीता देवड़िया, डॉ सौमिली मंडल के साथ महाविद्यालय के समस्त शिक्षक-शिक्षिकाएं एवं कर्मचारीगण उपस्थित रहे। कुल 45 ऑनलाइन पेपर प्रस्तुत किए गए। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर सुप्रिया सिंह ने एवं धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी की आयोजन सचिव प्रोफेसर नीहारिका लाल ने किया।

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