Writer amish tripathi

Writer amish tripathi interacted with BHU students: चर्चित लेखक अमिश त्रिपाठी ने बीएचयू के विद्यार्थियों के साथ किया संवाद

Writer amish tripathi interacted with BHU students: प्राचीन काल से ही भारत रहा है वैश्विक सॉफ्ट पावर: अमिश त्रिपाठी

रिपोर्टः डॉ राम शंकर सिंह

वाराणसी, 16 दिसंबर: Writer amish tripathi interacted with BHU students: प्रख्यात लेखक और नेहरू सेंटर लंदन के निदेशक अमीश त्रिपाठी ने कहा है कि भारत प्राचीन काल से ही एक वैश्विक सॉफ्ट पावर था और हम उस स्थिति को पुनः प्राप्त करने की राह पर अग्रसर हैं। वे काशी तमिल संगमम के अंतर्गत दर्शनशास्त्र और धर्म विभाग, कला संकाय, तथा मालवीय मूल अनुशीलन केंद्र द्वारा “आधुनिक भारत का उदय” विषय पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के साथ आयोजित संवाद कार्यक्रम को सबोधित कर रहे थे।

आईआईएम (कोलकाता) से पढ़े-लिखे बैंकर से लेखक बने अमीश त्रिपाठी ने वाराणसी और बीएचयू से अपने संबंधों की चर्चा करते हुए बताया कि उनके दादा विश्वविद्यालय में एक अध्यापन करते थे, जबकि उनके पिता यहां के विद्यार्थी थे। त्रिपाठी ने कहा कि भारत की वृद्धि दर ने इस वर्ष ब्रिटेन को भी पीछे छोड़ दिया है और सकल घरेलू उत्पाद के मामले में भारत ने 150 वर्षों में जो गंवाया था, उसे महज़ पिछले 30 वर्षों ही पुनः प्राप्त कर लिया है।

उन्होंने विश्वास जताया कि पिछले 900 वर्षों में भारत ने जो खोया है वह अगले 25 वर्षों में वापस अर्जित कर लिया जाएगा। अर्थशास्त्रियों का हवाला देते हुए त्रिपाठी ने कहा कि भारत की प्रति व्यक्ति आय यूरोप की प्रति व्यक्ति आय से अधिक हो जाएगी, ठीक वैसे ही जैसे नौ सौ वर्ष पहले थी। उन्होंने कहा कि हम विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर हैं, लेकिन सवाल यह है कि जब हम उस स्थिति में पंहुचेंगे, तो हम किस प्रकार का राष्ट्र बनना चाहेंगे।

त्रिपाठी ने कहा, “हम उस परंपरा से आते हैं जहां हम दूसरों पर हमला नहीं करते हैं, इसलिए हम एक महाशक्ति नहीं बल्कि विश्वगुरु की तरह बर्ताव करेंगे।” उन्होंने यह भी कहा कि आज के युवा एक स्वर्णिम युग में पैदा हुए हैं क्योंकि वे भारत के उत्थान को देखेंगे, इसलिए देश के भविष्य को आकार देने में उनकी बड़ी भूमिका है।

अमिश ने कहा कि हमें भारत की जड़ों और प्राचीन विरासत को समझने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि दशकों तक हमें बताया गया कि भारत एक राष्ट्र नहीं है और इसे हमारे औपनिवेशिक शासकों ने एक राष्ट्र के रूप में तैयार किया है, जो हर तरह से गलत था। श्री त्रिपाठी ने प्राचीन भारतीय ग्रंथों का हवाला देते हुए कहा कि हमारे पूर्वजों ने भारत का निर्माण किया और एक ऐसा सशक्त राष्ट्र जो बाहरी ताकतों द्वारा लगातार हमलों के बावजूद आज तक मजबूती और गर्व से खड़ा है।

उन्होंने कहा “हम हमेशा एक समृद्ध सभ्यता और सांस्कृतिक रूप से मजबूत राष्ट्र थे, जो विविधता से परिपूर्ण था। काशी तमिल संगम इसी का उत्सव है।” अमीश त्रिपाठी ने कहा कि आखिर क्यों इतिहास की पुस्तकों में कई महान भारतीय नायकों का उल्लेख नहीं किया गया। “हम राजा सुहेलदेव का कोई उल्लेख नहीं देखते हैं। चोलों का बहुत ही सीमित उल्लेख मिलता है। इतिहास की किताबें लिखते समय कई और कहानियाँ को छोड़ दिया गया, आखिर क्यों” त्रिपाठी ने भारतीय इतिहास की महान कहानियों को जानने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।

उन्होंने कहा कि अतीत में अनेक ऐसे भारतीय साम्राज्य थे, जो व्यापारिक रूप से अत्यंत विकसित व प्रभावशाली थे, और व्यापार के माध्यम से हम अपनी संस्कृति और सॉफ्ट पावर को विश्व भर में ले गए। न कि दूसरों की तरह, जिन्होंने आक्रामकता दिखाई और सैन्य शक्ति का इस्तेमाल किया। त्रिपाठी ने भारत के व्यापारिक संबंधों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आत्मविश्वास से आगे बढ़ाने पर जोर देते हुए कहा कि जैसे-जैसे हम अधिक व्यापार करेंगे, हम और अधिक विकसित और सशक्त होंगे।

उन्होंने कहा कि जब हम एक विश्व शक्ति बनने की अपनी राह पर आगे बढ़ रहे हैं, तो हमें अपने पूर्वजों की तीन प्रमुख सीखों का पालन करना होगा: दृढ़ता से अपनी रक्षा करना, आत्मविश्वास के साथ व्यापार करना और अपनी अर्थव्यवस्था को विकसित करना तथा तीसरा अच्छी चीजों से सीखते रहना, चाहे वे कहीं से भी हों।

अमीश त्रिपाठी से विद्यार्थियों के सवालों के जवाब भ दिये। छात्र-छात्राओं ने साहित्य, धर्म और विज्ञान से जुड़े विविध प्रश्न पूछे। त्रिपाठी ने कहा कि अपने सपनों को पूरा करने के जुनून और व्यवहारिकता के बीच संतुलन बनाना अति आवश्यक है। उन्होंने कहा कि अज्ञान के अंधकार को सिर्फ ज्ञान से ही दूर किया जा सकता है।

त्रिपाठी ने छात्रों को किसी विषय की गहरी समझ रखने के लिए अधिक और विविध चीजों को पढ़ने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत में विज्ञान और ज्ञान कोई टकराव नहीं था और दोनों जो “प्रश्न करने” या “जवाब खोजने” के आधार पर ही आगे बढ़े।

कार्यक्रम के दौरान लेखक के रूप में अमीश त्रिपाठी की यात्रा पर एक लघु फिल्म भी प्रदर्शित की गई। दर्शन एवं धर्म विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. आनंद मिश्र ने अपने स्वागत भाषण में लेखक की कृतियों में प्रगतिशील विषय-वस्तु की सराहना की। प्रो. संजय कुमार, समन्वयक, मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र, के धन्यवाद ज्ञापन के साथ सत्र का समापन हुआ, जिन्होंने त्रिपाठी के तर्क का ज़िक्र करते हुए कहा कि ‘नेशन’ की पूरी ‘अवधारणा’ यूरोपीय है और भारत को, जिसकी विविधता उसकी शक्ति है, यूरोपीय पैमानों पर नहीं मापा जा सकता।

डॉ. धृति रे दलाई ने कार्यक्रम का संचालन किया। मंगलाचरण स्तोत्र प्रो. पतंजलि मिश्र द्वारा किया गया। मंच कला संकाय की छात्राओं सुमेधा, श्रेया और अलका ने बीएचयू कुलगीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के दौरान उपस्थित लोगों में अंग्रेजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो कृष्ण मोहन पांडेय, डॉ. उषा त्रिपाठी, प्रो. कमल शील, डॉ. पंचानन दलाई, डॉ. राहुल चतुर्वेदी आदि शामिल रहे।

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