Akshar Mahotsav-2025: नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय मे प्रो मनीष का रोचक व्याख्यान
Akshar Mahotsav-2025: नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में आयोजित “अक्षर महोत्सव, 2025” के अंतर्गत प्रो. मनीष अरोड़ा का व्याख्यान: कैलीग्राफी को उच्च शिक्षा में नवाचार से जोड़ने पर दिया जोर
- डिजिटल उपकरणों से कैलिग्राफी को मिली है नवीन दिशा
रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 16 नवम्बर: Akshar Mahotsav-2025: राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में आयोजित “अक्षर महोत्सव, 2025” के अंतर्गत काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के दृश्य कला संकाय के व्यवहारिक कला विभागाध्यक्ष प्रोफेसर मनीष अरोड़ा ने “उच्च शिक्षा और शोध में कैलिग्राफी: डिजाइन शिक्षा में परंपरा और नवाचार का समन्वय” विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। प्रो. अरोड़ा ने कहा कि समकालीन डिजाइन शिक्षा में कैलिग्राफी दृश्य संप्रेषण और टाइपोग्राफी का आधार तत्व है। उन्होंने पारंपरिक और आधुनिक कैलिग्राफी के परस्पर संबंधों को रेखांकित करते हुए बताया कि भारतीय लिपियों की विरासत और नवीन डिजिटल उपकरणों का समन्वय विद्यार्थियों को विस्तृत सृजनात्मक संभावनाएं प्रदान करता है।
उन्होंने डिजाइन पाठ्यक्रम में कैलिग्राफी की अनिवार्य भूमिका पर बल देते हुए कहा कि कार्यशालाएं, प्रदर्शनियां, तथा अंतःविषयक सहयोग विद्यार्थियों में प्रयोगशीलता और मौलिक दृष्टि को विकसित करते हैं। बी.एच.यू. की विशिष्ट पहल का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय कैलिग्राफी और डिजाइन नवाचार के क्षेत्र में देश का एकमात्र उच्च शिक्षण संस्थान है जिसके पास एक समर्पित एमओयू है। डिजाइन इनोवेशन सेंटर (DIC) के सहयोग से आयोजित कार्यशालाएं, शोध परियोजनाएं और संकाय विनिमय कार्यक्रम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान प्राप्त कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इन पहलों का सीधा प्रभाव विद्यार्थियों के कार्य में दिखाई देता है, जिसमें अक्षर-रूपों की संवेदनशीलता, दृश्य लय और डिजाइन परियोजनाओं में मौलिकता स्पष्ट रूप से बढ़ती है। तकनीक की भूमिका पर उन्होंने कहा कि डिजिटल उपकरणों ने कैलिग्राफी को नई दिशा प्रदान की है, जिससे विद्यार्थी पारंपरिक और डिजिटल दोनों माध्यमों पर समान दक्षता से कार्य करने में सक्षम हो रहे हैं।
अंत में उन्होंने कहा कि कैलिग्राफी एक उभरता हुआ शोध-विषय है, जिसके अंतर्गत एआई-आधारित टाइप डिज़ाइन, विरासत-संरक्षण, डिजिटल अभिलेखीकरण तथा अंतरसांस्कृतिक अध्ययन जैसे नए शोध आयाम उपलब्ध हैं। उन्होंने भारतीय कैलिग्राफी के संरक्षण, संवर्धन और अकादमिक नेटवर्क के विस्तार की आवश्यकता पर बल देते हुए व्याख्यान का समापन किया।


