Tribal Youth Dialogue: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में जनजातीय युवा संवाद संपन्न
Tribal Youth Dialogue: जनजातीय समाज की हजारों वर्ष पुरानी ज्ञान परंपरा विकसित भारत की संकल्पना को साकार करने में अति महत्वपूर्ण: कुलपति प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी
रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 31 अगस्त: Tribal Youth Dialogue: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में जनजातीय युवा संवाद-2025 का भव्य आयोजन किया गया। “विकसित भारत की संकल्पना में जनजातीय युवाओं की सहभागिता” विषय पर आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी ने कहा कि जनजातीय समाज की हजारों वर्ष पुरानी ज्ञान परंपरा विकसित भारत की संकल्पना को साकार करने में अति महत्वपूर्ण योगदान देगी। उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज की संस्कृति और विरासत काफी समृद्ध है और देश के सभी हिस्सों के लोगों को इसके बारे में जानना चाहिए व इससे जुड़ना चाहिए।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और (Tribal Youth Dialogue) राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के संयुक्त तत्वाधान में स्वतंत्रता भवन में आयोजित इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के सदस्य निरुपम चकमा रहे।उन्होंने कहा कि यह जानना आवश्यक है कि विकसित भारत की संकल्पना में जनजातीय समाज का योगदान और सहभागिता कितना होगा? कहा कि आयोग के संज्ञान में आया है कि ग्रामीण जनजातीय लोगों में भारत सरकार के योजनाओं तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के बारे में ही जागरूकता की कमी है। ऐसे में हमारा कर्तव्य है कि ग्रामीण जनजातीय लोगों को जागरूक किया जाए.
मुख्य वक्ता के रूप में वनवासी कल्याण आश्रम के अखिल भारतीय सह-युवा प्रमुख आनंद जी ने कहा कि अस्मिता के बिना किसी भी व्यक्ति, परिवार, समाज या राष्ट्र का अस्तित्व संभव नहीं है। अस्मिता में गीत, संगीत, नृत्य, भाषा, परंपरा, रीति रिवाज, पुरखे, उपासना, आस्था आदि सब सम्मिलित है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकसित भारत-2047 के विजन को साकार करने के लिए 10 करोड़ जनसंख्या वाले जनजातीय समाज को साथ लेकर चलना होगा।
Tribal Youth Dialogue: कुलसचिव प्रो. अरुण कुमार सिंह ने भगवान बिरसा मुंडा की जीवनगाथा को याद करते हुए कहा -‘कुछ लोग वर्षों में नहीं कर्मो में जीते हैं’। उन्होंने कहा कि महज़ 25 वर्ष के जीवन में भगवान बिरसा मुंडा का न्याय और अस्मिता के संघर्ष आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायक है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय संघर्ष के प्रणेता भगवान बिरसा मुंडा ने जनजातीय लोगों की अस्मिता और अस्तित्व के लिए ने केवल अपने प्राण न्योछावर किए बल्कि समाज में जागरूकता और समरसता को आगे बढ़ाया।
कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत महामना पंडित मदन मोहन मालवीय और भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण, दीप प्रज्वलन, कुलगीत और जनजातीय प्रार्थना के साथ की गई। अतिथियों का स्वागत अंगवस्त्र, पुष्पगुच्छ और स्मृति चिन्ह देकर डॉ. राजू मांझी, डॉ. लिनेट खाखा, प्रो. मिनु साकड़ा, डॉ. साहेब राम तुडू एवं डॉ. विजय भगत ने स्वागत किया गाया।
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अपने स्वागत वक्तव्य में कार्यक्रम के संयोजक डॉ. राम शंकर उराँव, सहायक आचार्य, प्रबंध शास्त्र संस्थान, ने आयोजन के उद्देश्य को रेखांकित करते हुए कहा कि भारत सरकार जनजातीय समाज की आस्था, संस्कृति और रीति रिवाज को सहेजने का प्रयास कर रही है। डॉ. श्रुति आर हंसदा, सहायक आचार्य, जन्तु विज्ञान विभाग ने कार्यक्रम का सुचारू रूप से संचालन किया जिससे वक्ताओं और श्रोताओं के मध्य तारतम्यता बनी रही। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. संजय कुमार ने किया।
कार्यक्रम के दौरान युवा संवाद सत्र की अध्यक्षता करते हुए रहे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के वरिष्ठ सलाहकार प्रकाश उइके ने कहा कि इस देश का प्रत्येक रहवासी आदिवासी ही हैं। उन्होंने कहा कि इस देश के किसी भी क़ानून या किताब में आदिवासी शब्द का उल्लेख नहीं है. जनजातीय अस्मिता पर तनुश्री ने कहा कि जनजातीय भाषाएं प्रकृति से निर्मित है और हमारा चलना ही नृत्य है और बोलना गीत।
वहीं, अल्बर्ट बेग ने कहा कि आदिवासी का अर्थ आदिकाल से निवास करने वाला, हम आदिवासी के भुमि पर ही भारत देश विद्यमान है। संवाद सत्र में कुल 13 वक्ताओं ने अपना विचार व्यक्त किये। संवाद सत्र के निर्णायक मंडल में प्रो. निर्मला होरो, आचार्य, विज्ञान संस्थान, डॉ. राजू मांझी आदि रहे. संवाद सत्र का संचालन विकास मीणा ने किया।
इस अवसर पर जनजातीय समाज की प्रमुख हस्तियों पर एक चित्र प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया, जिसका कुलपति समेत गणमान्य अतिथियों ने अवलोकन किया। समापन जनजातीय विरासत से प्रेरित मनमोहक सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के साथ हुआ। इनमें मिजोरम का दावोजौ़म लैंम नृत्य, मेघालय का लेवताना नृत्य, नागालैंड का तिखिर नृत्य, ममिता नृत्य जो त्रिपुरा की फसल कटाई के लिए प्रसिद्ध है,
