literary event of Maithili language: वाराणसी में मैथिली भाषा का साहित्यिक आयोजन
literary event of Maithili language: सारनाथ में साहित्यिक चौपाड़ि की 25 वीं कड़ी में जुटे मैथिली रचनाकार
- literary event of Maithili language: कविता में पर्यावरणीय चिंतन का होना समकालीन आवश्यकता: प्रो. बन्दना
- ख्यात साहित्यकार प्रोफेसर बन्दना झा ने दिया अध्यक्षीय उद्बोधन
रिपोर्टः डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 04 अप्रैल: literary event of Maithili language: मैथिलि भाषा के उभरते हुए युवा रचनाकार सारनाथ में जुटे . साहित्यिक चौपाड़ि का यह आयोजन डॉ. पंकज प्रियांशु के संयोजन में सम्पन्न हुआ। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता ख्यात साहित्यकार असिस्टेंट प्रो. बंदना झा जी ने की। इस अवसर पर बनारस में मैथिली भाषा को जीवित रखने वाली नई पीढ़ी के कई कवियों, गीतकारों एवं कथाकारों ने अपनी-अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं।
कवयित्री नेहा झा ‘मणि’ के काव्य संग्रह ‘अँगनामे अकास’ पर विस्तृत चर्चा हुई। आमंत्रित लेखकों एवं कवियों द्वारा काव्य की ऐसी रसधार बही कि मंदिर प्रांगण में उपस्थित भक्तगण भी स्वयं को उसमें बहने से रोक नहीं पाए।

इस मौके पर (literary event of Maithili language) आर्यपुत्र दीपक ने एक कविता ‘माय! गे माय, हम प्यार करै छी ओकरा से’ और एक गीत ‘अयथिन अवध से राम’ का काव्य पाठ किया। कवयित्री नेहा झा मणि ने ‘भावक चित्रण’ और ‘बलिप्रदान’ शीर्षक कविता का पाठ किया। नवीन आशा जी ने ‘मैं कवि हूँ’ शीर्षक कविता का पाठ किया। मधुबनी से आए कथाकार पंकज प्रियांशु ने ‘वृद्धा’ नामक भावविभोर करने वाली कहानी का पाठ किया। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (का.हि.विवि.) में शिक्षण सहायक एवं वरिष्ठ शोधार्थी प्रशांत प्रियदर्शी ने अपनी कहानी ‘मीयाँ’ का वाचन किया जो समाज में पसरी कुरीतियों पर एक प्रहार सी थी एवं ‘कार्य प्रगति पर है’ नामक कविता के माध्यम से उन्होंने व्यवस्था पर गहरी चोट करने का प्रयास किया।
कवि एवं गीतकार प्रभंजन कुमार ‘राहुल’ ने कोरोना काल में लिखी आत्मप्रेरक गीत का गायन एवं कविता वाचन भी किया। किसलय ठाकुर ने सुधी श्रोता के दायित्व का बख़ूबी निर्वहन किया एवं रचनाकारों की रचना पर अपनी बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उनका उत्साहवर्धन किया। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो० बंदना झा ने कहा कि कविता में पर्यावरणीय चिंतन का होना समकालीनता की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आधुनिकता की वजह से हम अपनी संस्कृति, संस्कार और सुदीर्घ ज्ञान की परम्परा को विस्मृत करते जा रहे हैं, जिसे सहेजने और संजोने की आवश्यकता है।

प्रो. झा ने आगे कहा कि अपने इतिहास से कटकर कभी भी, कोई भी संस्कृति न तो आधुनिक हो सकती है एवं न ही वैचारिक रूप से श्रेष्ठ हो सकती है। इस अवसर पर कई साहित्यनुरागी सुधी श्रोता मौजूद थे। ग़ौरतलब है कि इस साहित्यिक आयोजन की 24 कड़ियाँ पिछले कुछ सालों के दरमियान बनारस में आयोजित हो चुकी हैं. यह 25वीं कड़ी थी।
काशी और मिथिला की अटूट प्राचीन परंपरा को अक्षुण और जीवंत बनाये रखने हेतु उक्त प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय है. काशी में रहने वाले मैथिल युवा, अपनी मातृभाषा मैथिली को जीवित रखने और विकसित करने का भरसक सतत प्रयास कर रहे हैं एवं सफल भी हो रहे हैं.
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