Innovative Biosensor for Dairy Industry: वैज्ञानिकों ने एक अनोखा बायोइलेक्ट्रॉनिक डिवाइस किया तैयार; दूध में यूरिया की जांच होगी आसान
Innovative Biosensor for Dairy Industry: आई आई टी बी एच यू और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बनाया अभिनव बायोइलेक्ट्रॉनिक डिवाइस
तरबूज के बीज से बने बायोइलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से दूध में यूरिया की जांच होगी आसान
आईआईटी (बीएचयू) और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने डेयरी उद्योग के लिए विकसित किया अभिनव बायोसेंसर

रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 08 अक्टूबर: Innovative Biosensor for Dairy Industry: डेयरी उद्योग में एक क्रांतिकारी प्रगति के तहत भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी-बीएचयू) और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के वैज्ञानिकों ने एक अनोखा बायोइलेक्ट्रॉनिक डिवाइस तैयार किया है, जो दूध में यूरिया मिलावट की पहचान अत्यधिक संवेदनशीलता के साथ कर सकता है। यह क्रांतिकारी तकनीक एक अप्रत्याशित संसाधन – तरबूज के बीज – का उपयोग करती है और यूरिया एंजाइम के साथ एक किफायती, सरल और उच्च दक्षता वाला बायोसेंसर बनाती है।
आईआईटी-बीएचयू के जैव रासायनिक अभियांत्रिकी के एसोसिएट प्रोफेसर प्रांजल चंद्रा और बीएचयू के स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के वरिष्ठ प्रोफेसर अरविंद एम. कायस्थ के नेतृत्व में इस शोध टीम ने तरबूज के बीजों में यूरिया एंजाइम की खोज की, जो यूरिया को तोड़ता है। इस खोज की शुरुआत दोनों वैज्ञानिकों के बीच एक साधारण बातचीत से हुई, जिससे जिज्ञासा जगी और अंततः एक ऐसे बायोसेंसर के विकास की ओर ले गई, जो वर्तमान में उपलब्ध वाणिज्यिक विकल्पों से कहीं बेहतर है।

प्रोफेसर प्रांजल चंद्रा और प्रोफेसर अरविंद एम. कायस्थ ने कहा हम तरबूज के बीजों को न फेंकने की बात कर रहे थे, इस छोटे से विचार से, हमने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जो डेयरी उद्योग में खाद्य सुरक्षा को नाटकीय रूप से सुधारने की क्षमता रखती है। इस विचार को आईआईटी (बीएचयू) की शोध छात्रा मिस डाफिका एस डखर और बीएचयू के शोध छात्र श्री प्रिंस कुमार ने एक वास्तविक तकनीक में बदलने का कार्य किया।
प्रोफेसर प्रांजल चंद्रा ने बताया कि तरबूज यूरिया एंजाइम को सोने के नैनोकण और ग्रेफीन ऑक्साइड के नैनोहाइब्रिड सिस्टम पर स्थिर किया गया, जिससे डिवाइस को बेहतर इलेक्ट्रोकेमिकल और बायोइलेक्ट्रॉनिक गुण प्राप्त हुए। इस तकनीक के माध्यम से दूध के नमूनों में बिना जटिल तैयारी के यूरिया की तेजी से और सटीक पहचान की जा सकती है।
उन्होने बताया कि यह विकसित किया गया सेंसर न केवल अत्यधिक संवेदनशील है बल्कि भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) और खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) जैसी नियामक संस्थाओं के मानकों को भी पूरा करता है। यह तकनीक डेयरी फार्मों और प्रसंस्करण संयंत्रों में साइट पर परीक्षण को संभावित रूप से बदल सकती है, जिससे यूरिया स्तर की तेजी से और विश्वसनीय निगरानी सुनिश्चित हो सकेगी।

पेटेंट दाखिल और शोध प्रकाशित
टीम ने इस नवाचार के लिए बायो-रिकग्निशन तत्व-आधारित नैनो-सेंसर का पेटेंट प्रकाशित हो चुका है । उनके शोध को अमेरिकी केमिकल सोसाइटी (ACS) के जर्नल में प्रकाशित किया गया है, जिससे यह सेंसर वर्तमान स्वर्ण-मानक DMAB विधि की तुलना में अधिक प्रभावी साबित हुआ है। यह खोज कृषि उप-उत्पादों में छिपी हुई अपार संभावनाओं और अंतःविषयक सहयोग के महत्व को उजागर करती है। इस टीम की सफलता यह याद दिलाती है कि कई बार सबसे क्रांतिकारी विचार रोजमर्रा की घटनाओं से आते हैं—जैसे तरबूज के बीज, जिन्हें अधिकांश लोग बेकार समझकर फेंक देते हैं।