Hindi day in BHU: बी एच यू मे हिंदी दिवस पर भव्य समारोह आयोजित
Hindi day in BHU: विज्ञान संस्थान में हिंदी दिवस 2025: अन्विति समारोह में गूंजा हिंदी का गौरव
- अतिथियों ने संयुक्त रूप से विज्ञान के रहस्य को हिंदी भाषा में प्रस्तुत करने वाली अचिंत्य पत्रिका का किया लोकार्पण
- भारतीय राजनयिक एवं लेखक दिलीप सिन्हा ने हिंदी भाषा के वैश्विक प्रभाव पर दिया रोचक व्याख्यान
रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 14 सितम्बर: Hindi day in BHU: काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के विज्ञान संस्थान के महामना सभागार में हिंदी दिवस के अवसर पर हिंदी प्रकाशन समिति द्वारा आयोजित अन्विति – हिंदी दिवस समारोह का भव्य आयोजन किया गया। इस समारोह में मातृभाषा हिंदी, विज्ञान और विश्वविद्यालय के बीच संबंध को रेखांकित करते हुए हिंदी की सांस्कृतिक और वैज्ञानिक महत्ता को उजागर किया गया।कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथियों के विचारों ने उपस्थित लोगों को गहरे तक प्रभावित किया।अवसर पर हिंदी विशेषांक अचिन्त्य का विमोचन भी किया गया, जो विज्ञान की हिंदी में सशक्त अभिव्यक्ति का प्रतीक बना।
शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन और कुलगीत के साथ हुआ। हिंदी प्रकाशन समिति के अचिंत्य टीम ने अचिन्त्य पत्रिका के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा “हिंदी न केवल हमारी मातृभाषा है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक पहचान और एकता का प्रतीक भी है। अन्विति समारोह का उद्देश्य हिंदी को विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में और अधिक सशक्त करना है।” इसके बाद, अचिन्त्य विशेषांक का विमोचन सभी अतिथियों ने संयुक्त रूप से किया.
कुलपति प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी ने अपने संबोधन में हिंदी को शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण माध्यम बताया। उन्होंने कहा, “हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक और वैज्ञानिक विरासत का हिस्सा है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय जैसे संस्थान हिंदी को विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। मुझे अत्यंत ख़ुशी है की अचिन्त्य जैसे प्रकाशन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं, जो यह दर्शाते हैं कि हिंदी में भी जटिल वैज्ञानिक अवधारणाओं को सरलता और प्रभावी ढंग से व्यक्त किया जा सकता है। अब समय आ गया है कि हिंदी प्रकाशन समिति के कार्यो को पूरे विश्व में फैलाने का समय आ गया है। पॉडकास्ट के माध्यम से बी एच यू के कार्यो को लोगों तक पहुचना चाहिए।
प्रो. चतुर्वेदी ने यह भी जोड़ा कि हिंदी को तकनीकी और डिजिटल युग में अपनाने की आवश्यकता है। “आज के दौर में, जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डिजिटल तकनीक हमारे जीवन का हिस्सा बन रही हैं, हमें हिंदी को इन क्षेत्रों में भी सशक्त करना होगा। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी भाषा को वैश्विक मंच पर ले जाएँ।” उनके इस विचार ने उपस्थित छात्रों और शिक्षकों में हिंदी को आधुनिक संदर्भों में अपनाने का उत्साह जगाया। डॉ मयंक नारायण सिंह ने विषय की रूपरेखा रखते हुए राजनयिक दिलीप सिन्हा द्वारा लिखित पुस्तक “तिब्बत” का विषयवस्तु प्रस्तुत किया।
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अवसर पर भारतीय राजनयिक दिलीप सिन्हा ने कहा कि भारतीय डायस्पोरा पूरे विश्व में फैला हुआ है, और कहीं भी कोई घटना घटती है उसका असर भारत पर पड़ता है। इसलिए हिंदी के वैश्विक परिदृश्य में महत्व लगातार बढ़ रहा है। उन्होंने वैश्विक परिदृश्य में बोलते हुये कहा कि सोवियत संघ और चीन में फूट पड़ने के बाद इसका सबसे ज़्यादा फ़ायदा अमेरिका को मिला जो राष्ट्रपति ओबामा को काफ़ी समझ आ चुका था। उसके बाद ट्रम्प के समय अब चीजें बहुत तेज़ी से बदल रही हैं । रूस और चीन में पुनः दोस्ती हो चुकी है, जिसके परिदृश्य में व्यापार ही है। एक तरीके से शीत युद्ध की वापसी हो चुकी है। जिस प्रकार से अंतराष्ट्रीय तनाव बढ़ा है, यह तृतीय विश्व युद्ध की तरफ़ विश्व को धकेल रही है।
जहाँ एक ओर विश्व में उथल पुथल हो रहा है, दक्षिण एशिया भी इससे अछूती नहीं है। लेकिन दक्षिण एशिया की समस्याएं भारत के कारण नहीं बल्कि पड़ोसियों के कारण है। बहुत पुरानी बात हो चुकी है कि काबुल से ड्राई फ्रूट आते थे और तिब्बत से गर्म कपड़े बिकने आते थे, लेकिन अब समय काफ़ी बदल चुका है। दक्षिण एशिया में सबसे मजबूत लोकतंत्र भारत का ही है,
जिसका नतीजा सबके सामने है कि किसी भी दक्षिण एशियाई देश में समस्या होती है तो लोग भारत में शरण लेते है। भारत एक रिफ़्यूजियम की तरह हो गया है। भारत में नेपाल के लोग आकर नौकरी कर सकते है, समान बेच सकते है। लेकिन कनाडा और अमेरिका जो एक दूसरे के बहुत नज़दीक है, में भी ऐसा समन्वयन नहीं है। इसलिए दक्षिण एशिया अगर स्थिर है तो वो कारण भारत ही है। आपने कहा कि “हिंदी आज केवल भारत तक सीमित नहीं है। यह विश्व की 61 करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है, और यह संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। हिंदी हमारी सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक स्तर पर ले जाने का एक शक्तिशाली माध्यम है।”

कार्यक्रम का एक प्रमुख आकर्षण अचिन्त्य हिंदी विशेषांक का विमोचन रहा। यह विशेषांक विज्ञान की जटिल अवधारणाओं को हिंदी में सरल और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने का एक प्रयास है। समिति के संपादक ने बताया कि इस विशेषांक में BHU के छात्रों और शोधकर्ताओं द्वारा लिखे गए लेख शामिल हैं, जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण जैसे विषयों को हिंदी में प्रस्तुत करते हैं।
विशेषांक का विमोचन करते हुए प्रो. चतुर्वेदी ने कहा, “यह विशेषांक हिंदी को वैज्ञानिक लेखन में एक नया आयाम देगा। यह न केवल छात्रों को प्रेरित करेगा, बल्कि यह भी सिद्ध करेगा कि हिंदी में किसी भी विषय को प्रभावी ढंग से व्यक्त किया जा सकता है।” उपस्थित लोगों ने इस प्रयास की सराहना की और इसे हिंदी के प्रचार-प्रसार में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।
हिंदी प्रकाशन समिति के सदस्य डॉ अभिषेक द्विवेदी ने धन्यवाद दिया. संचालन डॉ चंद्रशेखर त्रिपाठी ने किया। अवसर पर विज्ञान संस्थान के कार्यवाहक निदेशक प्रोफेसर आर के अस्थाना, जंतु विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रोफेसर एम सिंगरवेल, छात्र समन्वयक मधु तापड़िया, प्रोफेसर वी के तिवारी, डॉ पवन दूबे, डी रजनीश कुमार, डॉ राघव मिश्र, प्रोफेसर एसपी सिंह, प्रोफेसर उमाशंकर, संचार वैज्ञानिक डॉ ज्ञान प्रकाश मिश्र एवं डॉ बाला लखेंद्र, विज्ञान की जटिलता को सरल भाषा में जनप्रिय बनाने वाले ख्यातिप्राप्त लेखक डॉ दया शंकर त्रिपाठी सहित भारी संख्या में छात्र छात्रायें उपस्थित थे।
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