Energy Conservation Day: ऊर्जा-संकट से बचने लिए जरूरी है ऊर्जा संरक्षण !: गिरीश्वर मिश्र
Energy Conservation Day: ऊर्जा के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। भौतिक नियम बताता है कि ऊर्जा न पैदा की सकती है न समाप्त ; उसका सिर्फ़ रूपांतरण ही होता है। मानव जीवन की सारी गतिविधियाँ इस मायावी ऊर्जा पर ही टिकी हुई हैं। ऊर्जा ही अपना रूप बदल-बदल कर हमारी कल्पनाओं को साकार करती है। सामान्यत: अदृश्य सी रहने वाली ऊर्जा हमारे दृश्य जगत को रचते हुए हर जगह हावी है। ऊर्जा के नए नए स्रोत खोजे जाते रहे हैं जो आणविक ऊर्जा तक पहुँचे हैं। ईंधन से भोजन बनाने में ही नहीं उसके लिए प्रयोग में आने वाली सामग्री हम तक पहुचे इसके लिए हर कदम पर जरूरी मशीन, उर्बरक, पानी सबके लिए अलग-अलग तरह से ऊर्जा की ज़रूरत पड़ती है।
ऐसे ही परिवहन, मौसम से सुरक्षा और वस्तुओं के निर्माण के लिए भी ऊर्जा आवश्यक है। दर असल आधुनिक जीवन शैली, पारिस्थितिकी, प्रदूषण और ऊर्जा के उपयोग के प्रश्न आपस में बुरी तरह से गुँथे हुए हैं। विकास के साथ प्रतिव्यक्ति ऊर्जा की माँग बढ़ रही है। समृद्ध देशों में जीवन स्तर को उन्नत रखने के लिए अधिकाधिक ऊर्जा चाहिए, उभरते देशों में कृषि अर्थ व्यवस्था से औद्योगिक व्यवस्था की तरफ़ आगे बढ़ने में भी ऊर्जा चाहिए। परंतु यह भी जरूरी है कि उन 80 प्रतिशत लोगों के साथ मिल कर काम किया जाय जिनके पास केवल एक चौथाई संपत्ति है। दरअसल ऊर्जा की समस्या वैज्ञानिक, तकनीकी, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कई जटिल समस्याओं का एक परस्पर गुँथा समूह है।
भारत वर्ष की विशालकाय जनसंख्या और आर्थिक गतिविधि में तेजी के कारण यहाँ ऊर्जा की माँग निरंतर बढ़ती जा रही है। आज भारत विश्व में ऊर्जा की खपत की दृष्टि से तीसरे स्थान पर है। परंतु हमारा बुनियादी ढांचा कमजोर पड़ रहा है जिसके चलते बिजली की आपूर्ति में बड़ी बाधा पहुँचती है और उसका दुरुपयोग भी होता है। साथ ही देश में ऊर्जा की ग़रीबी भी बनी हुई है। दुर्बल वर्ग के लोगों को बिजली और अन्य आधुनिक ऊर्जा के संसाधन अभी भी उपलब्ध नहीं हो सके हैं।
यह भी गौरतलब है कि जीवाश्म ऊर्जा (फॉसिल फ्यूल) के अत्यधिक उपयोग से कार्बन उत्सर्जन की मात्रा भी तेजी से बढ़ रही है। इसका पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव है और वह ख़तरनाक साबित हो रहा है। भारत की ऊर्जा मुख्यतया जीवाश्म ईंधन यानी कोयला, तेल, तथा गैस आदि से उपलब्ध होती है। आज देश में बिजली उत्पादन का 70 प्रतिशत कोयले पर टिका है। आयात और घरेलू आपूर्ति में कमी के चलते यह अब बड़ा मंहगा पड़ रहा है। इस पर निर्भरता, ऊर्जा की बढ़ती मांग, अन्य देशों पर निर्भरता, पुराने क़िस्म का ढाँचा और नवीकरण की संभावना वाले ऊर्जा स्रोतों को अपनाने में धीमी गति ने देश के सामने मुश्किलें खड़ी कर दी हैं ।
इनसे ऊर्जा-सुरक्षा, विकास के टिकाऊपन और पर्यावरण प्रदूषण से जुड़ी समस्यायें जन्म ले रही हैं। सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा में निवेश तो बढ़ा है फिर भी कच्चे तेल और कोयले के आयात के कारण आर्थिक दबाव बहुत ज़्यादा बना हुआ है। आज आवश्यकता है कि नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार हो और ऊर्जा का कुशलतापूर्वक उपयोग किया जाय। देश को अपने संसाधनों की खोज बढ़ानी होगी ताकि ऊर्जा की दृष्टि से आत्मनिर्भरता का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके । बिजली के ट्रांसमिशन और वितरण के नेटवर्क को अविलंब सुधारना होगा ताकि ऊर्जा चोरी और दुरुपयोग की रोकथाम हो सके ।
विशेषज्ञों के अनुसार वैश्विक स्तर पर ऊर्जा समस्या अगले सौ वर्षों में मानवता की शीर्ष दस समस्याओं में से एक गंभीर समस्या बनेगी। वह मानवता के सम्मुख खड़ी समस्याओं में विकटतम हो रही है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि पिछले खाड़ी युद्धों में और सद्य: चल रहे युद्ध की पृष्ठभूमि में ऊर्जा का प्रश्न भी मौजूद है । बढ़ती जनसंख्या से ऊर्जा की ज़रूरतें निरंतर बढ़ रही है। नवीकरणीय ऊर्जा समस्या से निपटने की एक अच्छी युक्ति है। सौर ऊर्जा मानव जाति की सभी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त भी है। इस विशाल ऊर्जा स्रोत का दोहन एक समाधान है। ऊर्जा संरक्षण के प्रश्न पर विचार करते हुए कम खर्चीले और प्रदूषणमुक्त ऊर्जा स्रोतों की खोज जारी है। हाइड्रोजन आधृत ऊर्जा के उपयोग की दिशा में प्रगति हुई है।
ऊर्जा संकट का एक व्यवहारिक पक्ष भी है । इस संकट का समाधान ऊर्जा-संरक्षण के लिए जरूरी अभ्यास की अपेक्षा करता है। आदतों में बदलाव द्वारा ऊर्जा के उपभोग में कमी ला कर ऊर्जा के दुरुपयोग को नियंत्रित और कम किया जा सकता है। इस दृष्टि से विभिन्न कार्यों के लिए कम ऊर्जा की खपत वाली ऊर्जा-सक्षम तकनीकों का अवलंबन भी कारागार साबित होगा । ऐसे कदम उठाने का पर्यावरणीय लाभ भी मिलेगा । ग्रीन हाउस गैस के उत्पादन पर नियंत्रण होगा और दूसरे प्रदूषकों, जो जलवायु-परिवर्तन को तीव्र करते हैं और प्राकृतिक आवास का क्षरण करते हैं उनसे रक्षा भी होगी । इससे घर या व्यापार हर क्षेत्र में खर्चे में कमी आएगी । ऊर्जा सरक्षण के लिए संसाधन-प्रबंधन की बड़ी सख़्त ज़रूरत है। हमें वर्तमान ऊर्जा-संसाधनों का विस्तार करना होगा और ऊर्जा-सुरक्षा को सुनिश्चित करना होगा। इन सब उपायों से आयातित ऊर्जा पर हमारी निर्भरता घट सकेगी ।
वस्तुत: ऊर्जा-संरक्षण का लक्ष्य अपने व्यवहार – बर्ताव में बदलाव तथा विभिन्न क्षेत्रों में तकनीकी के विकास द्वारा पाया जा सकता है। उदाहरण के लिए घर में बिजली का उपयोग अपनी आवश्यकता के अनुसार किया जाना चाहिए। कमरा से बाहर जाते समय ध्यान से स्विच ऑफ़ कर देने की आदत बिजली बिल में बड़ी बचत ला सकता है। प्राकृतिक प्रकाश का अधिकाधिक उपयोग करना भी प्रभावी उपाय है। ऊर्जा की किफायत वाले एल ए डी बल्ब लगाने से लगभग 75 प्रतिशत ऊर्जा की बचत होती है। इसी तरह विभिन्न उपकरणों के उपयोग के तरीकों को भी सुधारना होगा। जब उपकरण को उपयोग में न ला रहे हों तो अनप्लग कर देना, स्वचालित ऑफ़ होने की व्यवस्था रखना बहुत लाभकर होता है।
हीटिंग और कूलिंग के लिए प्रोग्राम वाली थर्मोस्टेट की व्यवस्था महत्वपूर्ण होती है। आज यातायात में भी ऊर्जा की बड़ी खपत होती है। इसलिए कोशिश की जानी चाहिए कि कम से कम ड्राइव करें। इसकी जगह पैदल चलना, साइकिल का उपयोग, परिवहन के जन-माध्यम (जैसे- बस, ट्रेन, मेट्रो आदि ) का उपयोग बड़ी कारगार पहल हो सकती है। निजी वाहनों का कम से कम उपयोग किया जाना चाहिए। इससे सड़कों पर वाहनों की अतिरिक्त भीड़ जिससे जाम लगता है और प्रदूषण होता है घटेगी। वाहन को अनावश्यक तेज या कम गति से नहीं चलाना चाहिए । इसी दृष्टि से हाइब्रिड, बिजली का वाहन, या वह जो कम ईंधन की खपत करता हो आ रहे हैं और लोकप्रिय भी हो रहे हैं। व्यापार-व्यवसाय का नियमित ऊर्जा आडिट किया जाना चाहिए ताकि ऊर्जा के दुरुपयोग का ठीक से पता चल सके और ऊर्जा-सक्षम उपकरणों का उपयोग सुझाया जा सके ।
उपकरणों को अपग्रेड करना तथा ऐसी प्रणाली लागू करना जो अपशिष्ट औद्योगिक ऊर्जा का उपयोग कर सके लाभकर सिद्ध होगा। आज जान बूझ कर ऊर्जा का कम से कम उपयोग करने को प्रोत्साहित करने की जरूरत है ताकि खर्च में कमी हो, अपशिष्ट कम पैदा हो, पर्यावरण की रक्षा हो और भविष्य के लिए ऊर्जा-सुरक्षा भी हो सके। कम से कम ऊर्जा सेवाओं का लाभ लेना और ऊर्जा का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए हरित अभियांत्रिकी के तौर-तरीके अपनाने होंगे।
ऊर्जा का उत्पादन और उपयोग एक बहु आयामी प्रश्न है जिसके साथ राजनैतिक मुद्दे, तकनीकी विकास, आर्थिक प्रगति, पर्यावरण के सरोकार महत्वपूर्ण रूप से जुड़े हुए हैं। साथ ही उपभोक्ता व्यवहार जटिल होता है और व्यक्तित्व, सामाजिक मानक, ऊर्जा-संरक्षण के प्रति अभिवृत्ति, आरामदायक जीवन शैली की पसंद, ऊर्जा-सुरक्षा की चेतना, पर्यावरण के प्रति मैत्री आदि पर निर्भर करता है। ऊर्जाक्षम प्रणालियों को अपनाने और विवेकपूर्ण ऊर्जा का उपयोग द्वारा ही ऊर्जा संरक्षण संभव है। उपभोक्ता व्यवहार को बदल कर ही दीर्घकालिक और स्थायी समाधान मिल सकेगा।
संगीत, नृत्य, रैली और अन्य सार्वजनिक कार्यक्रम बताते हैं कि हमारी बिगड़ी आदतें ऊर्जा की माँग को बढ़ाती जा रही हैं। अनावश्यक ऊर्जा उपयोग किसी के हित में नहीं है। ऊर्जा की समस्या सार्वभौमिक है और जैसा स्टॉकहोम घोषणा में कहा गया था पृथ्वी एक है इस बात को साबित कर रही है। ऊर्जा के मुद्दे आधुनिक समाज में ऊर्जा के वितरण, उपलब्धता और आपूर्ति के साथ उसके टिकाऊपन और स्वच्छ यानी प्रदूषणमुक्त ऊर्जा स्रोत की तलाश तकनीकी उन्नति के साथ ही हमारे संस्कार और व्यवहार पर भी निर्भर करेगा।


