Rishi Agastya Vahan Campaign: ऋषि अगस्त्य वाहन अभियान तमिलनाडु से पहुंचा काशी
Rishi Agastya Vahan Campaign: काशी तमिल सांस्कृतिक सेतु को साकार करता ‘ऋषि अगस्त्य वाहन अभियान’ पहुंचा काशी
- नौ दिवसीय यात्रा को पूर्ण करते हुये काशी पहुंचने पर, वाहन अभियान दल का नमो घाट पर हुआ भव्य स्वागत
- 02 दिसंबर को तमिलनाडु के तेनकाशी से प्रारम्भ हुई यह वाहन यात्रा 2460 किमी पूर्ण कर पहुंची काशी
रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 10 दिसम्बर: Rishi Agastya Vahan Campaign: तमिल और भारतीय परंपरा की प्राचीन सभ्यागत यात्रा को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से निकला सेज अगस्त्य व्हीकल एक्सपीडिशन (SAVE) काशी तमिल संगमम् 4.0 का प्रमुख आकर्षण—अपनी नौ दिवसीय यात्रा पूर्ण करते हुए 10 दिसंबर को वाराणसी स्थित नमो घाट पहुंचा। यह ऐतिहासिक कार रैली 2 दिसंबर को ‘दक्षिण काशी’ तिरुनेलवेली (तेनकासी) से प्रारंभ हुई थी और लगभग 2,460 किलोमीटर की दूरी तय कर तमिलनाडु से उत्तर भारत तक सांस्कृतिक, भाषाई और आध्यात्मिक एकात्म की अविच्छिन्न धारा की स्मृति को पुनर्जीवित करती आगे बढ़ी।
रैली में शामिल 20 वाहनों और लगभग 100 प्रतिभागियों का भव्य स्वागत मोहन सराय काशी द्वार पर किया गया, जहां एमएलसी हंसराज विश्वकर्मा सहित सैकड़ों कार्यकर्ताओं एवं नागरिकों ने पुष्पवर्षा और माल्यार्पण कर अगवानी की। इसके बाद नमो घाट पर पहुँचने पर मंडलायुक्त, वाराणसी मण्डल, एस. राजलिंगम (आईएएस) और जिलाधिकारी सत्येन्द्र कुमार (आईएएस) ने दल का औपचारिक स्वागत किया।
अवसर पर मंडलायुक्त एस. राजलिंगम ने सेव टीम को संबोधित करते हुए कहा कि यह यात्रा न केवल तमिल और काशी की सांस्कृतिक निकटता का उत्सव है, बल्कि भारत की उस आध्यात्मिक एकता की जीवंत अनुभूति भी है। जिसने सदियों से उत्तर और दक्षिण को एक सूत्र में बांध रखा है। SAVE अभियान युवा पीढ़ी को हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने का अद्भुत प्रयास है, और काशी इस ऐतिहासिक संगम की साक्षी बनकर गौरवान्वित है।
यात्रा के दौरान प्रतिभागियों ने चेरा, चोल, पांड्य, पल्लव, चालुक्य और विजयनगर जैसे महान राजवंशों की संस्कृति, वास्तुकला और ज्ञान–परंपराओं की विरासत से जुड़े स्थलों का अध्ययन करते हुए स्थानीय समुदायों से संवाद स्थापित किया। कारवां ने तमिल प्रदेश से लेकर उत्तर भारत तक फैली हुई सभ्यागत निरंतरता, कलात्मक परंपराओं, शिल्प, साहित्य एवं सिद्ध चिकित्सा परंपराओं के जीवंत सूत्रों को खोजने और दस्तावेजीकृत करने का कार्य किया।
मोहन सराय स्थित काशी द्वार पर एम. एल. सी. हंसराज विश्वकर्मा ने रैली का स्वागत के बाद कहा कि,
यात्रा का एक महत्वपूर्ण आयाम पांड्य राजा ‘आदि वीर पराक्रम पांडियन’ की उस ऐतिहासिक परंपरा को भी स्मरण करना था, जिन्होंने उत्तर भारत की यात्रा कर सांस्कृतिक एकता का संदेश फैलाया और शिव मंदिर की स्थापना की—इसी प्रसंग से तेनकासी को “दक्षिण काशी” नाम की व्युत्पत्ति जुड़ी मानी जाती है।
अवसर पर अधिकारियों एवं विशिष्ट अतिथियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस दृष्टि को रेखांकित किया, जिसमें भाषा, संस्कृति और क्षेत्रीय विभेदों के नाम पर उत्पन्न भ्रांतियों को दूर करते हुए भारत की सांस्कृतिक एकता को पुनः जागृत करने का आह्वान किया गया है।
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वक्ताओं ने कहा कि तमिल संगमम् यात्रा हमारे एकता, समरसता और सांस्कृतिक गौरव का अद्वितीय उदाहरण है। भारतीय संस्कृति में कभी भाषा या जातीयता के नाम पर विभाजन का उन्माद नहीं रहा। वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना हमें जोड़ती है और यह यात्रा उसी सनातन चेतना का प्रतीक है। काशी तमिल संगमम यात्रा उत्तर से दक्षिण तक फैली हमारी आध्यात्मिक एकात्मता का सजीव प्रतीक है। हमारे लिए यह गौरव का विषय है कि यह कारवां काशी पहुँचा और सांस्कृतिक आदान–प्रदान का ऐतिहासिक अवसर प्रदान किया।
यात्रा से जुड़े सदस्य बताते हैं कि सेव अभियान का उद्देश्य भारत की युवा पीढ़ी को यह समझाना है कि हमारी समकालीन पहचानें सदियों पुरानी सभ्यागत यात्रा का परिणाम हैं और इस सांस्कृतिक निरंतरता को समझना भविष्य के भारत निर्माण की आधारशिला है।


