Professor Ishtiaqs lecture

Professor Ishtiaq’s lecture: प्रोफ़ेसर इश्तियाक ने माना कि कोई भी इस्लामिक राष्ट्र, लोकतान्त्रिक हो ही नहीं सकता

Professor Ishtiaq’s lecture: बी एच यू मे स्वीडेन के प्रो.इश्तियाक अहमद का रोचक व्याख्यान

जिन्ना : द्विराष्ट्रवाद का सिद्धांत और भारत का विभाजन विषयक व्याख्यान मे प्रो. अहमद का व्याख्यान रहा शोध परक

  • Professor Ishtiaq’s lecture: मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र के सभागार मे आयोजित कार्यक्रम मे समन्यवक प्रोफ़ेसर संजय कुमार ने मुख्य वक्ता को किया सम्मानित
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रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 04 अप्रैल:
Professor Ishtiaq’s lecture: मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र एवं अन्तर सांस्कृतिक अध्ययन केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में द्वि-दिवसीय विशिष्ट व्याख्यान श्रृंखला का आरंभ हुआ। इस द्वि-दिवसीय विशिष्ट व्याख्यान श्रृंखला के मुख्य वक्ता चर्चित राजनीतिक विज्ञानी और विचारक तथा स्टॉकहोम विश्वविद्यालय, स्वीडन के एमिरेट्स प्रोफेसर इश्तियाक अहमद थे.

व्याख्यान विषय ‘जिन्ना, द्विराष्ट्रवाद का सिद्धान्त और भारत का विभाजन’ (Jinnah, the Two-Nation Theory and the Partition of India) पर अपने व्यख्यान में प्रो. इश्तियाक अहमद ने कहा कि, मेरा मानना है कि कोई इस्लामिक राज्य कुछ भी हो सकता है पर उसका बहुलतावादी और लोकतांत्रिक होना कठिन है। जिन्ना ने गांधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत आगमन पर उनकी स्वागत सभा में स्वागत भाषण पढ़ा था. उनके भाषण से गांधी भी प्रभावित हुए थे, पर आगे चलकर गांधी के विचारों से उनकी सहमति नहीं बन पाई।

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1935 के अधिनियम के बाद से कांग्रेस के समाजवादी और साम्यवादी विचारधारा की ओर झुकाव से ब्रिटिश राज्य ने कांग्रेस की बढ़ती हुई शक्ति को कम करने के लिए जिन्ना और मुस्लिम लीग की विभाजनकारी नीति और साम्प्रदायिक विचारधारा को बढ़ावा दिया। 1930 के बाद से आलम्मा इकबाल और चौधरी रहमत अली ने मुस्लिम बहुल राज्य की आवश्यकता पर जोर दिया जिसे जिन्ना ने द्विराष्ट्रवाद के विचार के रूप में आगे बढ़ाया। आगे चलकर लॉर्ड लिनीलिथगो जैसे वायसराय ने यह माना कि भारत में ब्रिटिश सत्ता को बनाए रखने के लिए हमें कांग्रेस को कमजोर करना होगा और जिन्ना को समर्थन देना होगा।

जिन्ना विभाजन के बाद पूरे पंजाब और पूरे बंगाल को पाकिस्तान में चाहते थे पर उनकी ये इच्छा पूरी न हो सकी। चूँकि जिन्ना पाकिस्तान को कॉमनवेल्थ देशों में रखना चाहते थे इसलिए ब्रिटिश सेना ने भी भारत विभाजन को समर्थन दिया जिससे कि पाकिस्तान पर ब्रिटिश प्रभाव बना रह सके। भारत विभाजन के लिए जिन्ना से अधिक तत्कालीन ब्रिटिश सरकार की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण थी. यदि ब्रिटिश चाहते तो भारत विभाजन रुक सकता था।

आपने कहा कि चयनित इतिहास लिखना, इतिहास लिखना ही नहीं है बल्कि भ्रमित करना है। आपने कहा कि भारत में दो समुदायों के बीच नफरत पैदा करके विभाजन हुआ पर आज भी हिन्दुस्तान के आम लोगों के दिल में पाकिस्तान और पाकिस्तान के आम लोगों के दिलों में हिन्दुस्तान बसता है। विभाजन के समय भारत के नेतृत्व की खूबसूरती ये थी कि उन्होंने बदले की राजनीति ना करके समरस और प्रगतिशील देश बनाने का प्रयास किया और वे उसमें सफल भी रहे।

व्याख्यान के बाद प्रो. इश्तियाक अहमद ने उपस्थित श्रोताओं के विभिन्न प्रश्नों के उत्तर भी दिये। स्वागत व्यक्तव्य एवं अतिथि परिचय देते हुए मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र के समन्वयक प्रो. संजय कुमार ने कहा कि हमारे बीच दक्षिण एशिया के राजनीतिक इतिहास पर प्रकाश डालने के लिए सुदूर स्वीडन से आए प्रो. इश्तियाक अहमद का होना सौभाग्य की बात है। भारत के विभाजन पर आपका गहन शोध हमारे लिए ज्ञान के नए द्वार खोलेगा। कार्यक्रम संचालन डॉ. प्रियंका झा ने किया।

कार्यक्रम में प्रमुख रूप से विश्वविद्यालय के वरिष्ठ सलाहकार प्रो. कमलशील, प्रो. आर. के. मंडल, प्रो. दीपक मलिक, प्रो. पी.सी. प्रधान, डॉ. पी. दलाई, डॉ. श्रुति रे दलाई, डॉ. राहुल मौर्य, डॉ. आरती निर्मल, डॉ. ध्रुव कुमार सिंह, डॉ. धर्मजंग, डॉ. राजेश कुमार श्रीवास्तव, डॉ. राजीव वर्मा, डॉ. रमेश लाल एवं शोधार्थीगण कुंतालिका, दिव्यान्शी, अनन्या, नेहा, चन्दन, अंजलि, कंचन, रंजीत समेत बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित थे.

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