Book Release: ‘दी एनलाइटेंड मैनेजर’ पुस्तक का विमोचन एवं परिचर्चा का हुआ आयोजन
Book Release: स्पष्टता की शुरुआत अस्पष्टता के साथ होती है : प्रो. आशीष बाजपेयी
- इनबॉक्स मैनेजमेंट के बजाय सीधे संवाद करने से बढ़ेगी उत्पादकता : विश्वनाथ अल्लूरी
- बी एच यू के अटल इंक्यूबेशन सेंटर मे आयोजित विमोचन समारोह के मुख्य अतिथि प्रबंध शास्त्र संस्थान के निदेशक प्रो आशीष बाजपेयी को वी सी डब्लू की प्राचार्या प्रो अलका सिंह ने, अंग वस्त्रम् प्रदान कर किया सम्मानित
रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 09 दिसम्बर: Book Release: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के अटल इनक्यूबेशन सेंटर के सभागार में कृष्णमूर्ति फाउंडेशन ऑफ इंडिया के सचिव, विश्वनाथ अल्लूरी की पुस्तक ‘दी एनलाइटेंड मैनेजर’ का विमोचन मुख्य अतिथि प्रबंध शास्त्र संस्थान के निदेशक प्रो आशीष बाजपेयी के कर कमलो द्वारा सम्पन्न हुआ. विमोचन के उपरांत पुस्तक पर एक सारगर्भित परिचर्चा का आयोजन हुआ। इस अवसर पर सचिव एस एन दूबे, प्राचार्या प्रो अलका सिंह, प्रो पी वी राजू, ए कुमार स्वामी, सचिन शर्मा आदि उपस्थित रहे.
परिचर्चा की शुरुआत ‘एक्शन’ और ‘एक्टिविटी’ के बीच के फ़र्क को समझने से शुरू हुई। वक्ताओं ने कहा कि बिना किसी उद्देश्य और सचेतता के साथ किया गया कार्य महज ‘एक्टिविटी’ है, जबकि किसी उद्देश्य के लिए सचेतता के साथ किया जाने वाला कार्य ‘एक्शन’ कहलाता है। विश्वनाथ अल्लूरी ने कहा कि – “मैं अक्सर देखता हूँ, ऐसे लोगों की तादाद बढ़ रही है जो ऑफिस में बैठ कर अपने बगल के टेबल या चैम्बर में बैठे व्यक्ति के साथ, सीधा संवाद करने के बजाय, दिनभर मेल का रिप्लाई कर अपने काम से संतुष्टि मिलने का दावा करते हैं, यह कार्य से ज्यादा इनबॉक्स मैनेजमेंट और ये महज ‘एक्टिविटी’ है ‘एक्शन’ नहीं।”
परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए प्रो. आशीष बाजपेयी ने कहा कि यह पुस्तक ना सिर्फ कॉर्पोरेट जीवन बल्कि, जीवन को समग्र रूप से समझने के लिए एक दृष्टि देती है। उन्होंने कहा कि – “स्पष्टता की शुरुआत, अस्पष्टता के साथ ही शुरू होती है”। उन्होंने कहा कि – जीवन में कंफ्यूज होना एक बात है। लेकिन जीवन में बेहतरी के लिए यह जरूरी बात है कि हमें ‘कंफ्यूजन’ के बारे में जागरूकता होनी चाहिए। लेखक विश्वनाथ अल्लूरी ने भारतीय कॉर्पोरेट जगत में हाल के दिनों में काम के घंटों पर छिड़ी बहस के संदर्भ में कहा कि – “काम के 70-100 घंटे की बहस के बजाय हमें इस बात को तरजीह देना चाहिए कि, कर्मचारी अपने काम में दिल-दिमाग से कितना शामिल है”। उन्होंने यह भी कहा कि जीवन में बेहतरी के लिए जरूरी है कि हम ‘स्वीकारोक्ति’ और ‘अस्वीकारोक्ति’ के द्वैत से बाहर निकलें।
पुस्तक के लेखक विश्वनाथ अल्लूरी ने बताया कि उन्हें यह पुस्तक लिखने की प्रेरणा महान दार्शनिक और शिक्षा विद जे. कृष्णमूर्ति से मिली। टेक वर्ल्ड में रहते हुए उन्हें अमेरिका और यूरोप के बड़े-बड़े निवेशकों के साथ काम करने का मौका मिला, उनकी बनायीं कंपनी का अधिग्रहण सीमेंस जैसी बड़ी कंपनी ने किया। कार्यक्षेत्र में इतनी सफलता के बावजूद भी, कृष्णमूर्ति के विचारों के साथ बड़े होने के कारण उन्हें जीवन में हमेशा ऐसा लगता रहा कि हमें अपने समय और समाज को कुछ देकर जाना चाहिए जिसका नतीज़ा यह पुस्तक रही। उन्होंने कहा कि जीवन में गलत तरीकों से भी सही नतीजे मिल सकते हैं, लेकिन सही और गलत तरीकों के बीच का चुनाव ही जीवन की असल परीक्षा है।
अवसर पर पुस्तक के प्रकाशक हार्पर कॉलिंस के सचिन शर्मा ने बताया कि – पुस्तक को अमेज़न पर रिव्यू करने वाले विद्यार्थियों में से कुल तीन श्रेष्ठ समीक्षा करने वाले विद्यार्थियों को बड़ी टेक कंपनीज के साथ इंटर्नशिप करने का मौका प्रदान किया जाएगा। इसके लिए विद्यार्थी 28 फरवरी 2026 तक अमेज़न पर पुस्तक को रिव्यू कर सकते हैं।
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इस अवसर पर परिचर्चा के पूर्व वक्ताओं और विशिष्ट अतिथियों को सम्मानित किया गया। कृष्णमूर्ति फाउंडेशन, वाराणसी के सचिव एस. एन. दुबे ने अंगवस्त्रम देकर पुस्तक के लेखक विश्वनाथ अल्लूरी को, वसंत महिला महाविद्यालय, राजघाट की प्राचार्या प्रो. अल्का सिंह ने अंगवस्त्रम देकर प्रबंध शास्त्र संस्थान, बीएचयू के निदेशक प्रो. आशीष वाजपेयी को, कृष्णमूर्ति फाउंडेशन, वाराणसी की मुख्य प्रशासनिक अधिकारी स्मृति वर्मा ने अंगवस्त्रम देकर अटल इन्क्यूबेशन सेंटर के समन्वयक प्रो. पी. वी. राजू को, एस. एन. दुबे ने अंगवस्त्रम देकर कृष्णमूर्ति फाउंडेशन ऑफ इंडिया के ट्रस्टी ए. कुमारस्वामी को सम्मानित किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. योगेन्द्र जैन ने किया धन्यवाद ज्ञापन वी सी डब्लू की प्राचार्या प्रो. अलका सिंह ने दिया।


