BHU developed a new technology: बी एच यू ने प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए उद्योग के साथ किया समझौता
BHU developed a new technology: बीएचयू ने विकसित की है हल्दी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले पदार्थ करक्यूमिन के प्रभावी उपयोग की विधि
- अपने नवाचार के व्यावसायीकरण के लिए बीएचयू ने यूप्रिस बायोलॉजिकल्स के साथ किया करार
- त्वचा और दंत संबंधित समस्याओं के समाधान हेतु उत्पादों के विकास के लिए इस नवाचार में हैं कई संभावनाएं

रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 07 जुलाई: BHU developed a new technology: प्रयोगशालाओं में किए गए अनुसंधान को ज़मीन पर उतारना और समाज तथा जनसाधारण तक इसके लाभों को पहुँचाना नवाचार की व्यावहारिक उपयोगिता को दर्शाता है। यह वास्तविक विश्व की चुनौतियों के समाधान हेतु अनुसंधान के महत्व को भी रेखांकित करता है। इस दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने उद्योग के साथ साझेदारी की है। इस समझौते से नवाचार को जनसधारण के उपयोग हेतु उत्पाद में बदलने के लिए उद्योग का मार्ग प्रशस्त होगा।
विश्वविद्यालय ने सोमवार को यूप्रिस बायोलॉजिकल्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किये, जिसके अंतर्गत करक्यूमिन क्वांटम डॉट्स की तैयारी के लिए प्राप्त पेटेंट के व्यावसायीकरण हेतु लाइसेंसिंग अधिकार स्थानांतरित किए गए। यूप्रिस बायोलॉजिकल्स अत्यधिक दक्षता और नवाचार-आधारित निर्माण उद्यम है, जो जटिल निर्माणों को सटीकता के साथ तैयार करने में सक्षम सुविधाओं और तकनीकी टीम से सुसज्जित है।
इस समझौते पर कुलसचिव प्रोफेसर अरुण कुमार सिंह, तथा यूप्रिस बायोलॉजिकल्स के परियोजना समन्वयक अभिषेक सिंह द्वारा हस्ताक्षर किये गए। यह हस्ताक्षर कुलपति (प्रभारी) एवं रेक्टर प्रो. संजय कुमार की उपस्थिति में हुए। हिमांशु अग्रवाल, मुख्य वित्तीय अधिकारी (सीएफओ), यूप्रिस बायोलॉजिकल्स ने समझौता प्राप्त किया। इस दौरान बौद्धिक संपदा अधिकार एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण टास्क फोर्स के समन्वयक प्रो. बिरिंची कुमार सरमा तथा टास्क फोर्स के सदस्य प्रो. गीता राय, प्रो. रजनीश सिंह, डॉ. वेणुगोपाल, भी उपस्थित रहे। यह समारोह केंद्रीय कार्यालय में आयोजित हुआ।

प्रो. संजय कुमार ने प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में इस उपलब्धि के लिए बीएचयू टीम को बधाई दी। उन्होंने आईपीआरटीटी टास्क फोर्स के प्रयासों और शोधकर्ताओं की कड़ी मेहनत की सराहना की जिन्होंने नवाचार किया और उसके व्यावसायीकरण के विचार को मूर्त रूप दिया। यह नवाचार, जिसे भारत सरकार द्वारा पेटेंट प्रदान किया गया है, प्रो. प्रद्योत प्रकाश (माइक्रोबायोलॉजी विभाग, चिकित्सा विज्ञान संस्थान), प्रो. मोनिका बंसल (दंत चिकित्सा विज्ञान संकाय, चिकित्सा विज्ञान संस्थान), प्रो. राकेश कुमार सिंह (जैव रसायन विभाग, विज्ञान संस्थान) और डॉ. आशीष कुमार सिंह (जैव रसायन विभाग, पटना विश्वविद्यालय एवं पूर्व शोध सहयोगी, बीएचयू) द्वारा किया गया है।
करक्यूमिन क्वांटम डॉट्स (CurQDs) की तैयारी की यह अत्याधुनिक तकनीक CurQDs युक्त उत्पादों के व्यावसायिक उत्पादन में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। हल्दी में पाए जाने वाले करक्यूमिन से प्राप्त CurQDs सूक्ष्म-स्तरीय सटीकता के साथ शक्तिशाली जीवाणुनाशक, बायो-फिल्मरोधी, एंटीऑक्सीडेंट और सूजनरोधी गुणों से युक्त होते हैं। यह विधि जैव अनुकूल उत्पादन सुनिश्चित करती है, जो करक्यूमिन की पारंपरिक सीमाओं जैसे कम घुलनशीलता और जैव उपलब्धता को पार करती है।
सौंदर्य प्रसाधनों में, CurQDs उन्नत त्वचा देखभाल समाधान के लिए अद्वितीय संभावनाएं प्रदान करता है। जैव-फिल्म में मिलने और बैक्टीरिया से लड़ने की उनकी क्षमता उन्हें एंटी-एक्ने उपचारों के लिए आदर्श बनाती है, जबकि उनकी एंटीऑक्सीडेंट क्षमताएं UV-प्रेरित एंटीएजिंग से सुरक्षा और त्वचा की मरम्मत में मदद करती हैं। औषधीय क्षेत्र में, CurQDs की जीवाणु जैव-फिल्म को नष्ट करने और विषाणुता कारकों को रोकने की क्षमता पुरानी संक्रमणों जैसे पीरियोडॉन्टाइटिस के उपचार के लिए नए रास्ते खोलती है।
उद्योग को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की यह उपलब्धि बीएचयू की पिछले दो वर्षों की निरंतर प्रतिबद्धता व प्रयासों का परिणाम है। प्रो. बिरिंची कुमार सरमा के नेतृत्व में पुनर्गठित बौद्धिक संपदा अधिकार एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण टास्क फोर्स इस दिशा में जागरूकता फैलाने में उल्लेखनीय कार्य कर रही है। प्रो. सरमा ने बताया कि टास्क फोर्स के प्रयासों से विभिन्न विभागों से कई नए आविष्कारक सामने आए हैं और उन्होंने अपने नवाचारों को पेटेंट सुरक्षा हेतु प्रस्तुत किया है। टास्क फोर्स ने पूर्ववर्ती आईपीआर सेल के अध्यादेश को भी संशोधित कर उसे विश्वविद्यालय और आविष्कारकों दोनों के लिए सरल और प्रासंगिक बनाया है। इसके अतिरिक्त, आईपीआरटीटी सेल ने प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और कंपनियों को बीएचयू की पेटेंट तकनीकों के व्यावसायीकरण के लिए लाइसेंसिंग की प्रक्रिया पर भी कार्य किया है।
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उपयोगी शोध को केवल प्रयोगशालाओं और शैक्षणिक सीमाओं तक सीमित कर देना नवाचार के प्रभाव से अंतिम उपभोक्ताओं, समाज और जनसामान्य को वंचित करता है, जिससे यह आवश्यक हो जाता है कि शैक्षणिक संस्थान उद्योग के साथ सहयोग करें और व्यावहारिक समाधान लेकर आएं। इस उद्देश्य की पूर्ति में काशी हिंदू विश्वविद्यालय उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है। विश्वविद्यालय निकट भविष्य में और भी तकनीकों का हस्तांतरण करने की प्रक्रिया में है।
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