Device to prevent bone cancer

Device to prevent bone cancer: आई आई टी बी एच यू के वैज्ञानिकों ने खोजा हड्डी के कैंसर से बचाव हेतु डिवाइस

Device to prevent bone cancer: हड्डी के कैंसर की प्रारंभिक पहचान के लिए IIT (BHU) ने विकसित किया सेल्फ-रिपोर्टिंग डायग्नोस्टिक डिवाइस

  • प्रमुख बायोमार्कर की उच्च संवेदनशीलता से पहचान करने वाला नवीन सूक्ष्म सेंसर
  • प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका Nanoscale (रॉयल सोसायटी ऑफ केमिस्ट्री, यूके) में प्रकाशित
  • पेटेंट आवेदन दायर; तकनीक “मेक इन इंडिया” और “स्टार्ट-अप इंडिया” मिशनों से खाती है मेल

रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 25 जून:
Device to prevent bone cancer: कैंसर निदान के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय), वाराणसी के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा मिनिएचर (सूक्ष्म) बायोइलेक्ट्रॉनिक डिवाइस विकसित किया है, जो हड्डी के कैंसर की प्रारंभिक अवस्था में पहचान करने में सक्षम है। यह उपकरण ओस्टियोपॉन्टिन (Osteopontin – OPN) नामक एक प्रमुख बायोमार्कर का पता लगाता है, जो ऑस्टियोसारकोमा नामक आक्रामक हड्डी के कैंसर से पीड़ित बच्चों और किशोरों में सामान्यतः अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है।

इस अनुसंधान को हाल ही में Nanoscale (रॉयल सोसायटी ऑफ केमिस्ट्री, कैंब्रिज) पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। यह नवीन इम्यूनोसेन्सर रसायनों एवं जटिल प्रयोगशाला प्रक्रियाओं की आवश्यकता को समाप्त करता है और ग्रामीण एवं संसाधन-विहीन क्षेत्रों में भी किफायती और त्वरित जांच की सुविधा प्रदान करता है।

Device to prevent bone cancer team

इस शोध का नेतृत्व प्रो. प्रांजल चंद्रा, एसोसिएट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ बायोकैमिकल इंजीनियरिंग ने किया। उनकी टीम में शोधार्थी दफ़िका एस दखर और सुप्रतिम महापात्रा शामिल हैं, जिन्होंने सोने और रेडॉक्स-एक्टिव नैनोमैटेरियल के मिश्रण से एक उन्नत सेंसर सतह का विकास किया।

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“यह सेल्फ-रिपोर्टिंग सिस्टम पारंपरिक केमिकल मेडिएटर्स की आवश्यकता को समाप्त करता है और केवल एक बफर सॉल्यूशन के साथ कार्य करता है। यह प्रणाली इतनी सरल और संवेदनशील है कि इसे ग्रामीण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी आसानी से उपयोग में लाया जा सकता है,” प्रो. चंद्रा ने बताया।

दफ़िका और सुप्रतिम ने बताया कि यह डिवाइस अत्यधिक किफायती, पोर्टेबल और कम संसाधनों में कार्य करने योग्य है। मौजूदा OPN परीक्षण पद्धतियाँ जहाँ महंगी और समय लेने वाली होती हैं, वहीं यह उपकरण न्यूनतम अवसंरचना में तेज और सटीक जांच की सुविधा प्रदान करता है।

इस तकनीक के लिए संस्थान द्वारा वर्ष 2024 में पेटेंट आवेदन दायर किया जा चुका है। टीम अब इस प्रोटोटाइप को एक यूज़र-फ्रेंडली डायग्नोस्टिक किट के रूप में विकसित करने की योजना बना रही है, जिसे स्मार्टफोन से जोड़ा जा सकेगा और दूरस्थ चिकित्सा परामर्श संभव हो सकेगा।

प्रो. चंद्रा ने कहा, “हमारा उद्देश्य था कि मौजूदा विधियों की जटिलताओं को कम किया जाए, पहचान का समय घटाया जाए और अधिक संवेदनशील परिणाम हासिल किए जाएँ। यह तकनीक विभिन्न जैविक मार्करों की पहचान के लिए एक प्लेटफॉर्म टेक्नोलॉजी बन सकती है।”

संस्थान के निदेशक प्रो. अमित पात्रा ने इस नवाचार की सराहना करते हुए कहा, “यह शोध ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्टार्ट-अप इंडिया’ जैसी राष्ट्रीय पहलों के उद्देश्यों के अनुरूप है। भारतीय प्रयोगशालाओं से निकल रही इस प्रकार की किफायती और सामाजिक सरोकार वाली तकनीकें यह सिद्ध करती हैं कि विज्ञान मानवीय संवेदनाओं के साथ भी जुड़ सकता है।”

प्रो. पात्रा ने इस शोध को ‘प्रिसीजन मेडिसिन’ की दिशा में एक सार्थक कदम बताते हुए कहा कि यह नवाचार, कैंसर की समय रहते पहचान, व्यक्तिगत उपचार योजना और सतत निगरानी में अहम भूमिका निभा सकता है।

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