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Bharat Adhyayan Kendra: भारत अध्ययन केंद्र में काष्ठजिह्वा स्वामी और काशी विषयक संगोष्ठी संपन्न

Bharat Adhyayan Kendra: गुण नहीं हेरानो गुनगाहक हेरानो है….आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण

  • राम नगर, काशी की विश्व प्रसिद्ध रामलीला के पात्रों एवं संवाद शृंखला संगोष्ठी मे, आचार्य मिथिलेश ने दिया ओजस्वी व्याख्यान
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रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 07 अक्टूबर:
Bharat Adhyayan Kendra: भारत अध्ययन केन्द्र, काशी हिंदू विश्वविद्यालय एवं काशी कथा न्यास के संयुक्त तत्वावधान मे संगोष्ठी आयोजित हुई. श्री रामलीला संवाद शृंखला के अंतर्गत ‘संत काष्ठजिह्वा स्वामी (देवतीर्थ) और काशी’ विषय संगोष्ठी मे मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए दार्शनिक विचारक एवं धर्माचार्य आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण ने कहा कि, प्राज्ञपुरुषों की ओर देखकर ही परंपराओं का परिष्कार सम्भव है।

आपने कहा कि समर्थ गुरु के द्वारा ही यह सम्भव है कि काशीनरेश के दरबार की शक्ति को लेकर श्रीराम के दरबार को रामनगर में स्थापित कर दिया। एक नगरी के भीतर भारत का बृहत्तर भूगोल- अयोध्या, जनकपुर, चित्रकूट, लंका को स्थापित कर देने का श्रेय काष्ठजिह्वा स्वामी को जाता है।

भारत अध्ययन केंद्र में आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए स्वामी जी ने कहा कि काष्ठजिह्वा स्वामी का अवदान मात्र रामलीला ही नहीं है बल्कि उन्होंने देश के वांग्मय में संप्रदायों के द्वंद को भी समाप्त किया। स्वामी जी ने काष्ठ जिह्वा स्वामी की कृतियों का उल्लेख करते हुए बताया कि वे एक साथ वेदांत का निरूपण और सधुक्कड़ी भाषा दोनों का प्रयोग करते हैं। एक अन्य संदर्भ की और ध्यान आकृष्ट कराते हुए उन्होंने कहा कि रामनगर की रामलीला को स्थापित करने वाले काष्ठजिह्वा स्वामी की रामनगर में कहीं भी कोई प्रतिमा नहीं है जो अवश्य होनी चाहिए.

स्वामी जी ने काष्ठजिह्वा स्वामी के जन्म, उनके नाम पर विभिन्न विद्वानों के मतभेद को भी स्पष्ट किया और उनके द्वारा रचित साहित्य और कृतियों की भी विस्तार से चर्चा की।

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स्वामी जी ने काशी की महत्ता को बताते हुए कहा कि काशी भूगोल से अधिक भाव है। दुनियां भर की दिव्यताओं की श्रेष्ठता भारत में है और भारत वर्ष की दिव्यताएं काशी में हैं। इसलिए काशी ही भारतवर्ष के गौरव और उसके भाव को लौटा सकती है।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप मे पधारे पंडित रामनारायण पांडेय जो कि रामलीला रामनगर में चालीस वर्षों से हनुमान की तथा अन्य भूमिकाओं का निर्वहण कर रहे हैं, ने कहा कि रामलीला स्थलों में आज भी मनीषियों का संतत्व व देवत्व बचा हुआ है। करपात्री जी जैसे संत इन स्थलों की परिक्रमा करते थे और रज को माथे लगाते थे।

कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत भारत अध्ययन केंद्र के समन्वयक प्रो.सदाशिव द्विवेदी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन प्रो.सिद्धनाथ उपाध्याय ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ.अवधेश दीक्षित ने किया।

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कार्यक्रम में मुख्यरूप से पूर्व कुलपति प्रो प्रदीप कुमार मिश्र, डॉ.अमित पांडेय, डॉ. ज्ञानेंद्र राय, युवा समाज शास्त्री डॉ संतोष कुमार मिश्र, श्री बालकिशुन दीक्षित, अरविंद कुमार मिश्र, अभिषेक यादव, अमित सिंह, अमित राय, डॉ मुकेश शुक्ल, आशीष आशु, शिवम पांडेय , आलोक चतुर्वेदी, संजय शुक्ला इत्यादि लोग शामिल रहे।

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